Amrit Manthan

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Amrit Manthan

Amrit Manthan

40.00 35.00

In stock

40.00 35.00

Author: Gurudutt

Availability: 3 in stock

Pages: 240

Year: 1997

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

अमृत मंथन

प्राक्कथन

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर यह उपन्यास लिखा गया है।

वैसे तो श्रीराम के जीवन पर सैकड़ों ही नहीं, सहस्रों रचनाएँ लिखी जा चुकी हैं, इस पर भी जैसा कि कहते हैं।

हरि अनन्त हरि कथा अनन्त।

भगवान राम परमेश्वर का साक्षात अवतार थे अथवा नहीं, इस विषय पर कुछ न कहते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य सम्पन्न किया वह उनको एक अतिश्रेष्ठ मानव के पद पर बैठा देता है। लाखों, करोड़ों लोगों के आदर्श पुरुष तो वह हैं ही। और केवल भारतवर्ष में ही नहीं बीसियों अन्य देशों में उनको इस रूप में पूजा जाता है। राम कथा किसी न किसी रूप में कई देशों में प्रचलित है।

और तो और तथाकथित प्रगतिशील लेखक जो वैचारिक दृष्टि से कम्युनिस्ट ही कहे जा सकते हैं, वे आर्यों को दुष्ट, शराबी, अनाचारी, दशरथ को लम्पट, दुराचारी लिखते हैं परन्तु राम की श्रेष्ठता को नकार नहीं सके।

राम में क्या विशेषता थी, पौराणिक कथा ‘अमृत मंथन’ का क्या महत्व था, राम ने अपने जीवन में क्या कुछ किया, प्रस्तुत उपन्यास में इसी पर प्रकाश डाला गया है।

यह एक तथ्य है कि चाहे सतयुग हो, त्रेता-द्वापर हो अथवा कलियुग हो, मनुष्य की दुर्बलता उसमें उपस्थित पाँच विकार—काम, क्रोध, लोभ मोह तथा अहंकार होती है और इन विकारों के चारों ओर ही मनुष्य का जीवन घूमता है। इन विकारों पर नियंत्रण यदि उसका आत्मा प्रबल है तो उसके द्वारा होनी चाहिए अन्यथा राजदण्ड का निर्माण इसी के लिए हुआ है। परन्तु जब ये विकार किसी शक्तिशाली, प्रभावी राजपुरुष में प्रबल हो जाते हैं जो देश में तथा संसार में अशान्ति का विस्तार होने लगता है और तब श्रेष्ठ सत् पुरुषों को उसके विनाश का आयोजन करना पड़ता है और यही इतिहास बन जाता है। इन्हीं विकारों ने देवासुर संग्राम का बीज बोया, राणव तथा राक्षसों को अनाचार फैलाने की प्रेरणा दी, महाभारत रचा तथा आज के युग में भी देश के भीतर गृहयुद्ध तथा देशों में परस्पर युद्ध करा रहे हैं।

इन विकारों के प्रभाव में दुष्ट पुरुष सदा विद्यमान रहे हैं और आज भी प्रभावी हो रहे हैं। श्रेष्ठ जनों को संगठित होकर उनके विरुद्ध युद्घ के लिए तत्पर होना होगा। जो लोग, देश तथा जाति इस प्रकार के धार्मिक युद्धों से घबराती है वह पतन को ही प्राप्त होती है। दुष्टों के प्रभावी हो जाने से पूर्व ही जब तक उनके विनाश का आयोजन नहीं किया जाता, तब तक युद्धों को रोका नहीं जा सकता और ऐसे युद्धों के लिए सदा तत्पर रहना ही देश में शान्ति स्थिर रख सकता है।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

1997

Pulisher

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