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Description
आत्मज्ञान की साधना
आत्मज्ञान का मार्ग पुरुषार्थ का मार्ग है और पुरुषार्थ की एक सीमा है जहाँ इसकी समाप्ति हो जाती है। अन्तिम उपलब्धि प्रसाद रूप में ही होती है जिसकी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जिनकी भोगों में रुचि है तथा जिनकी चेतना का अभी विकास नहीं हुआ है उनके लिए यह मार्ग नहीं है; लेकिन पाठक इस ज्ञान के आलोक से अवगत होकर अपने जीवन को इस विकास प्रक्रिया में आगे बढ़ा सकें, इसी आशा से यह पुस्तक प्रस्तुत की गई है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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