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Description
अनुक्रम | ||
उत्सर्ग | 7 | |
बंगाली होने पर गर्व करने की कोई बात नहीं है | 18 | |
सुनील लेखक तो बड़े थे पर मनुष्य नहीं | 25 | |
पुरुषतन्त्र के रोगों के इलाज | 29 | |
पुरुषतन्त्र के सम्राट हुमायूँ अहमद | 36 | |
सबसे प्राचीन अत्याचार | 42 | |
बांग्लादेश का विजय दिवस | 48 | |
क़यामत | 50 | |
सामूहिक बलात्कार और जनता का रोष | 53 | |
नाबालिग का बलात्कार | 58 | |
पीसफुल डैथ | 62 | |
कलकत्ता पर शासन कर रहे हैं कट्टरपन्थी लोग | 64 | |
वे दिन | 66 | |
बर्बरता को एक बार बढ़ावा दिया कि मरे | 69 | |
है दुख, है मृत्यु | 72 | |
विवाह की कोई ज़रूरत है क्या ? | 76 | |
बांग्लादेश-1 | 85 | |
बांग्लादेश-2 | 89 | |
‘नववर्ष’ का उत्सव दोनों बंगाल में एक ही दिन हो | 91 | |
कहानी छोटे भैया की | 96 | |
लिंग-सूत्र | 109 | |
प्रेम-व्रेम | 120 | |
दो-चार चाहतें | 125 | |
कथोपकथन | 130 | |
रोज़मर्रा की साधारण कविता | 150 | |
जीवन का पचासवाँ वर्ष | 153 | |
प्रश्नोत्तर | 160 | |
औरत जात तो इमली जैसी है | 172 | |
मोगरे का पौधा आँगन में | 180 | |
डायरी | 184 | |
रफ़ कॉपी | 188 | |
ब्रह्मपुत्र के किनारे | 190 | |
बंगालियों का बुर्क़ा | 193 | |
सीधा-सादा साक्षात्कार | 199 | |
मीडिया और मिडिल क्लास मीडियोकर | 210 | |
अमेरिका का बंग सम्मेलन | 220 | |
पुंपूजा | 223 | |
‘देश’ का दरअसल मतलब क्या है? | 228 | |
बाबा | 233 | |
सेक्सब्वॉय | 238 | |
बलात्कार के लिए कौन जिम्मेदार? | 248 | |
फॉँसी-विरोधी देश क़ादिर मुल्ला की फाँसी की समालोचना क्यों कर रहे हैं ? | 254 | |
नारी यौनवस्तु नहीं है | 258 | |
गणतन्त्र की करुण दशा | 264 | |
निषिद्ध | 268 |
उत्सर्ग
सच बोलने के अपराध में जिनकी किताबें ‘निषिद्ध’ की जाती हैं, जिन्हें कारावास का दण्ड मिलता है, जिनको निर्वासित किया जाता है, जिनको मार डाला जाता है…
यह लड़ाई पूर्व के साथ पश्चिम की नहीं है
‘पश्चिम का नारीवाद’ तो क्या पूर्व के नारीवाद के बारे में भी मेरी कोई धारणा नहीं थी। ये सब न जानते हुए भी बचपन से ही परिवार और समाज के अनेक आदेश, उपदेश, बहुत-सी बाधा-निषेधों के बारे में मैंने सवाल उठाये हैं। जब मुझे बाहर वाले मैदान में खेलने से मना किया जाता था, लेकिन मेरे भाइयों को खेलने दिया जाता था, मासिक धर्म के समय जब मुझे ‘अपवित्र’ कहा जाता था, और कहा जाता था कि मैं बड़ी हो गयी हूँ, एवं काले बुर्क़े से ख़ुद को सिर से पैर तक ढक कर बाहर निकलूँ-इस पर मैंने प्रश्न ही किया है-माना नहीं। सड़क पर चलते वक़्त जब अनजान लड़के मुझ पर गालियों से वार करते, ओढ़नी छीन लेते, स्तन मसल देते, मैंने प्रतिवाद किया है। घर-घर में जब देखा कि पति पत्नियों को पीट रहे हैं, बेटी को जन्म देने के बाद स्त्रियाँ डर के रो रही हैं, मैं सह नहीं पायी। बलात्कार से पीड़ित लड़कियों के शर्मसार चेहरों को देखकर पीड़ा से नीली पड़ गयी हूँ। वेश्या बनाने के लिए एक शहर से दूसरे शहर, एक देश से दूसरे देश में स्त्रियों की तस्करी की खबर सुनकर रोयी हूँ। एक मुट्ठी चावल जुटाने के लिए पतिताओं के मुहल्लों में लड़कियों को भयंकर यौन-अत्याचारों को भुगतना पड़ रहा है, पुरुष चार-चार लड़कियों से शादी करके उन्हें घरों की दासी बना रहे हैं, वे सिर्फ़ इसीलिए उत्तराधिकार से वंचित हो रही हैं क्योंकि वे लड़की होकर जन्मी हैं। मैं यह मान नहीं पायी। जब देखती थी, घर से दो क़दम बाहर रखे नहीं कि उन्हें ‘जात बाहर’ करने की धमकियाँ मिल रही हैं। ‘गैर-मर्द’ को प्यार करने के अपराध की वजह से उन्हें जलाकर मारा जा रहा है-आँगन में गड्ढा खोदकर उसमें लड़कियों को डालकर पत्थर से मारा जा रहा है, मैं चीखती थी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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