Jeevan Darshan

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Jeevan Darshan

Jeevan Darshan

100.00 99.00

In stock

100.00 99.00

Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 5 in stock

Pages: 224

Year: 2018

Binding: Paperback

ISBN: 9788131004005

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

जीवन दर्शन

जन्म लेना और फिर अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करते-करते मर जाना जीवन की परिभाषा नहीं है—मनुष्य जीवन की तो कतई नहीं। मनुष्य योनि की शास्त्रों में प्रशंसा ऐसे ही नहीं की गई है। देवता भी मनुष्य जीवन प्राप्त करने को तरसते हैं। इसका कारण है इस योनि में छिपी अनंत संभावनाएं। स्वयं को सही रूप में जानना इस जीवन की कृतकृत्यता है। इसे आत्मसाक्षात्कार, ईश्वर दर्शन, मुक्ति, निर्वाण, इष्ट प्राप्ति आदि कई नामों से संबोधित किया जाता है।

इस, उपरोक्त रूप से जीवन कैसे सार्थक हो, इसी की विभिन्न युक्ति-तर्कों द्वारा जानकारी दी गई है इस पुस्तक में। इसमें सिद्धांत और व्यवहार दोनों पक्षो की सरल भाषा-शैली में अनूठा समन्वय है।

इस पुस्तक का आधार जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री स्वामी अवेधेशानन्द जी महाराज द्वारा विभिन्न अवसरों पर दिए गए प्रवचन हैं। स्वामीजी की अनूठी शैली की झलक आपको इस पुस्तक के प्रत्येक निःश्वास में मिलेगी।

महाराजश्री के प्रवचनों में से आम साधक के लिए महत्त्वपूर्ण अंशों का संकलन करना तथा उसके भाव और कथ्य को यथारूप में शब्दों में पिरोना साधारण कार्य नहीं है। इसे श्री गंगाप्रसाद शर्मा ने कितनी खूबसूरती से निभाया है, इसका अनुमान आपको इस पुस्तक के पढ़ने के बाद सहजरूप से हो जाएगा।

तत्व जिज्ञासु साधक को यह पुस्तक उनके लक्ष्य और वहाँ तक पहुँचने के साधनों के बारे में जानकारी देकर अपने इष्ट की प्राप्ति में सफल होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।

पुस्तक के बारे में आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है।

जीवन की अपनी-अपनी परिभाषाएँ हैं। इसे जिसने जैसे देखा, वैसा पाया। सृष्टि-निर्माण के पीछे दृष्टि महत्त्वपूर्ण होती है।

जीवन को परम उपलब्धि मानते हैं भारतीय ऋषि। वे जन्म से लेकर मृत्यु के बीच के अंतराल को ऐसा साधन बनाने की युक्ति बताते हैं, जिससे कोई भी इन दोनों स्थितियों से पार जा सकता है। उसके सभी शोक-भय समाप्त हो जाते हैं।

जिसके सामने जीवन पारदर्शी दर्पण के सामन है, हस्तामलकवत् है, वही सौभाग्यवान है, क्योंकि उसने वह पा लिया है जिससे जीवन को सही परिभाषा मिलती है। यह निर्दोष जीवन की उपलब्धि है। इसका अनुभव करो और मधुर स्वर से उच्च घोष करो—‘सोऽहम्’ (मैं वही हूं), अहं ब्रह्माऽस्मि (मैं ब्रह्म हूं) !

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Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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