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Description
एक थी सारा
एक थी सारा मेरी तहरीरों से कई घरों ने मुझे थूक दिया है लेकिन मैं उनका जायका नहीं बन सकती मैं टूटी दस्तकें झोली में भर रही हूँ ऐसा लगता है पानी में कील ठोक रही हूँ हर चीज़ बह जाएगी—मेरे लफ्ज, मेरी औरत यह मशकरी गोली किसने चलाई है अमृता ! जुबान एक निवाला क्यूँ कुबूल करती है ? भूख एक और पकवान अलग-अलग देखने के लिए सिर्फ ‘चाँद सितारा’ क्यूँ देखूँ ? समुंदर के लिए लहर ज़रूरी है औरत के लिए जमीन जरूरी है अमृता ! यह ब्याहने वाले लोग कहाँ गए ? यह कोई घर है ? कि औरत और इजाजत में कोई फर्क नहीं रहा… मैंने बगावत की है, अकेली ने, अब अकेली आंगण में रहती हूँ कि आजादी से बड़ा कोई पेशा नहीं देख ! मेरी मज़दूरी, चुन रही हूँ लूँचे मास लिख रहीं हूँ कभी मैं दीवारों में चिनी गई, कभी बिस्तर से चिनी जाती हूँ…
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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