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Description
अकेला पलाश
वह मौन चुप सी, उस बोलते वातावरण को निहारने लगी। बायीं ओर जंगल में थोड़ी-ऊँचाई पर दो-चार मकान बने थे, जहाँ रंग-बिरंगी साड़ियाँ सूख रही थीं। तभी ऊँची टोकरी से ढेर सारी गाय-बकरियों का हेड़ उतरा और में…में की लगातार आवाज करता सड़क पार करने लगा। उसे यह सब बड़ा अच्छा लग रहा था। जंगल जो दूर-दूर तक झाड़कर नंगा हो गया था वहीं दूर से पलाश के लाल चटक दहकते फूल झाँक-झाँक कर अपनी ओर दूसरों का ध्यान आकर्षित कर रहे थे। पलाश भी कितना प्यारा और जानदार फूल है, एक अकेला पेड़ सारे वीराने को अपने सौन्दर्य से भर देता है। काली आँखों में लिखा सौन्दर्य, जैसे किसी नवयौवना की कजरारी काली आँखों में उतरे नशीले, शराबी लाल-लाल खुमारी के डोरे हों।
…प्रकृति किसी तरह मन को बाँधने के लिए एक न एक बैसाखी का सहारा दे ही देती है। कल तक जो तहमीना सोचा करती थी कि इस, पलाश को देखकर वह प्रसन्न हो जाती है, अपना दुःख भूल जाती है, कल यह झड़ जाएगा तब क्या करेगी ? पर वहीं अब वह सोचने लगी है, नहीं अभी कुछ बचा है, अभी गुलमोहर के भूल अपने रंग बाँटते नजर आते हैं। वह फूल वीरानी में अपनी सौन्दर्य बिखेरेंगे और जब इन फूलों का भी अन्त हो जाएगा और बरसात अपने साथ ढेरों फूलों को लिए होगी। इस तरह प्रकृति भी कितनी पाबन्दी से अपना सौन्दर्य बनाये रखती है और मनुष्य भी बच्चे-सा बहल जाता है।
…पलाश अपनी टहनियों से झड़कर नीचे धरती पर बिखर गया था और पेड़ अपनी फिर वही कुरूपता लिए खड़ा था…..सुन्दरता का अन्त हो चुका था, हर सुन्दर चीज का यही अन्त है।…सपने भले लगते हैं पर बस आँख बन्द रहने तक ही।
…पलाश लाख सुन्दर हो, सुन्दर फूल हों, पर उसमें सुगन्ध नहीं न ! उसे जूड़े में सजाया नहीं जा सकता, वह किसी भी गुलदस्ते की शोभा नहीं बन पाता, पलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और उसी पर मुरझाकर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। कितना कड़वा सत्य है, जिसे उसने आज जाना, अभी..इसी क्षण !!
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Publishing Year | 2010 |
Pages | |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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