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Description
अपनी गवाही
कृष्णा को अमोल के दादा और गाभिन बकरी का खुशी-खुशी साथ बैठना, धुँए, गोबर और कविता के बीच जीना याद आ गया। उसे अपने नाना और नानी याद आए और याद आया कि किस तरह वे भी अपना सबकुछ अपनी जनेऊ, अपने शुद्ध-साफ कपड़े, यहाँ तक कि लाख रखवाली वाला बाग भी छोड़ते चले गए। पर उन्होंने प्रेम को, आपसी स्नेह को कभी नहीं छोड़ा। प्रेम, क्षमा और प्रेम। कृष्णा का मन हुआ कि वह अस्पताल के बिस्तर पर मुड़ी-तुड़ी लेटी इस कमजोर बूढ़ी औरत से, जो भारत सरकार द्वारा सारा प्याज मध्यपूर्व भेजने पर और सारे तेज तथा प्रतिभावान लड़कों को पश्चिम की ओर ठेलनेवाली नीति पर सख्त नाराज हो जाती थी, पूछे कि पार्वती क्या तुम्हें असली प्रेम का मतलब मालूम है। अगर मालूम है तो मुझे भी कुछ बताओ। यह बताओ कि जब इस नई दुनिया में तुम्हारा बेटा और उत्तराधिकारी सात समुन्दर पार से सेटेलाइट फोन से डॉक्टरों से एक विदेशी भाषा में बात कर रहा है तब एक बेटी प्रेम की तुम्हारी इस वसीयत को अपनी मातृभाषा में कैसे सँभाले ? ऐसे प्रेम को तुम क्या कहोगी जो सपनों से वास्तविकता को, मनुष्यों से भाषा को और अन्त से शुरू को जुदा ही नहीं करना चाहता ?
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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