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Description
गर्व से कहो
हम न अच्छे घरों में रहते हैं, न ढंग का खाना खाते हैं, न ही अच्छा पहनते हैं। पानी तक साफ़ नहीं पीते। हमारा अच्छा रहना तुम लोगों को खटकता है। तुम लोगों ने हमारे खेत, हमारा सुख-चैन छीन लिया। हमें नंगा किया। हमें जान से मारते रहे। हमारे पास है ही क्या ? गधे, कुत्ते, सूअर, झाडू ! वह भी तुमसे देखा नहीं जाता ? हम अछूत हैं लेकिन हैं तो इन्सान ! हमारी वेदना आप लोगों की समझ में नहीं आयी ? कभी भी तुम लोगों ने हमारी पुकार को सुना है ? हम कभी तुम लोगों के विरोध में गये नहीं।
तुम लोगों ने तरह-तरह से जीना मुश्किल किया। फिर भी हमने गाँव छोड़ा नहीं। गाँव के साथ रहे। हमसे इतना बैर क्यों ? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? तुम्हारी जूठन पर हम ज़िन्दा रहते हैं। न तुम्हारे घर में आते हैं, न मन्दिर, न श्मशान में। तुम लोगों से चार कदम दूर रहते हैं। तुम लोगों का हमारी परछाईं से परहेज़ है। हमारी परछाईं से, स्पर्श से तुम भ्रष्ट होते हों। हम गाँव के बाहर रहते हैं। तुम्हारे गाँव की सफ़ाई करते हैं। मरे जानवर ढोते हैं। तुमसे आँख उठाकर बात तक नहीं करते। न कभी उल्टा जवाब देते हैं। तुम लोगों का थूक झेलते हैं। तुम्हारी दी हुई भीख पर जीते हैं फिर भी तुम हमें क्यों सताते हो ?
इसी उपन्यास से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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