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Description
प्रेम न बाड़ी ऊपजे
प्रेम जैसे अत्यन्त नाजुक और संवेदनशील विषय को कथा का आधार बनाकर बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में इस उपन्यास को लिखने-रचने का एक विशेष अर्थ है। खासतौर से तब जब उपन्यासकार अपने लेखन और चिन्तन-कर्म की ऊँचाई पर पहुँचकर मनुष्य की आत्मा में झाँकता है और महसूस करता है कि सबसे खतरनाक, लेकिन पवित्र, वह दिशा होती है जिसमें प्रेम-सूर्य डूब जाए और उसकी धूप का कोई टुकड़ा पाठक के मन में भी चुभ जाए। वास्तव में प्रतिष्ठित कथाकार मिथिलेश्वर ने अपने इस नये उपन्यास के जरिये भावना और संवेदना को एक विराट् फलक पर यथार्थ से जोड़ने की गम्भीर कोशिश की है।
‘प्रेम न बाड़ी ऊपजै’ उपन्यास इस बात का भी खरा प्रमाण है कि मिथिलेश्वर ने गहरी मानवीय अनुभूतियों को बेजोड़ मार्मिक अभिव्यक्ति दी है-अपने रूमानी रूप में और प्रासंगिक यथार्थ के धरातल पर भी। सहज सम्प्रेषणीयता, जीवन-सौन्दर्य, अनुभवों की विविधता और विस्तार, भाषा की ताज़गी तथा गहरे सामाजिक यथार्थ के बहुआयामी संवेदनात्मक चित्र उनके इस उपन्यास में मौजूद हैं।…
Additional information
Binding | Paperback |
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ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher | |
Authors |
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