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- योगीराज अवतार सिंह अटवाल
के कुछ पल पाठकों के संग्
प्राचीन साइन्स (तन्त्र विद्या) को गलत व झूठा कहने वाले लोगों के लिए मैं अपने कुछ अनुभव यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ।
जिस तरह इन्सान अपना चेहरा आइने में देखकर सँवार सकता है, उसी प्रकार शुद्ध सोने की परख जौहरी के द्वारा होती है तथा किसी पहलवान की ताकत का अन्दाजा सिर्फ कुश्ती के अखाड़े में ही लगाया जा रूकता है। ठीक इसी तरह से इस प्राचीन तन्त्र विद्या का सम्पूर्ण ज्ञान गुरु-शिष्य प्रणाली के अन्तर्गत गुरु के चरणों में उनकी छत्रछाया में रहकर हो प्राप्त किया जाता था, और किया जाता है, इस बात के साक्षी हमारे प्राचीन ग्रन्थ हैं।
प्राचीन समय में अनेकों आश्रमों की स्थापना हमारे ऋषि-मुनियों ने की, जिनमें उन्होंने आयुर्वेद, ज्योतिष, तन्त्रविद्या, रसायन विद्या, योग विद्या, आदि उस समय की प्रचलित विद्याओं का प्रचार-प्रसार किया।
उस प्राचीन समय में जो शिष्य उन आश्रमों में प्रवेश पाते थे, वह वहाँ के आचार्यों (गुरुओं) की छत्रछाया में इन विद्याओं को ग्रहण करते थे, वह शिष्य उन आचार्यों की निगरानी में कठिन परिश्रम से गुजरकर विद्या प्राप्त करते थे।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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