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Description
तीसरी सत्ता
गिरिराज किशोर ने अपने इस उपन्यास तीसरी सत्ता के माध्यम से जिंदगी के ऐसे पहलुओं को चित्रित किया है, जो जाने-पहचाने होने के बावजूद, मानवीय सरोकार को एक ऐसे सोच से जोड़ देते हैं जो बृहत्तर प्रश्नों के सागर के बीच ला खड़ा करता है। तीसरी सत्ता में ‘परिवारिता’ है। परंतु उस परिवारिता से निकालकर फैलने वाले धागे कहीं-न-कहीं मनुष्य की संवेदना को बांधते हैं। तीसरी सत्ता एक त्रिकोण कथा है। एक संभ्रांत दाम्पत्य जीवन के बिखराव का क्रम एक बाहरी और ‘लब्भड़’ व्यक्ति के पदार्पण से आरंभ होता है।
तीसरी सत्ता का वह ‘लब्भड़’ इन्सान अपनी मानसिकता और साधनों की सीमा के अंदर, अपनी स्नेह-भाजन उस संभ्रांत महिला की ‘मुक्ति’ का साज सजाता है। लेकिन प्रश्न उसकी सफलता या असफलता पर ही नहीं टिकता। तीसरी सत्ता एक ऐसे मानसिक सोच को सामने लाता है जो हर किसी इन्सान या समाज के अपने ही आड़े आ खड़ा होता है और अंकुश की तरह उसे संयोजित करता है। तीसरी सत्ता का अंत असाधारण ढंग से होता है : “वह अपने हथियारों को टटोल-टटोलकर देखने लगता है। एक बड़ी दूर तक मार करने वाली शक्तिशाली गन तानता है। उसके तनते ही उसके कानों में बिन्नु के रोने की आवाज आती है। तनी हुई गन को पीछे घसीटने की कोशिश करता है, लेकिन गन उसे आगे की तरफ घसीटने लगती है।”
गिरिराज किशोर की लेखनी से निकलने वाली यह रचना अपने संदर्भों को तब तक विकसित करती रहेगी जब तक मानव के सोच और व्यवहार को व्याख्यायित करने की संभावना है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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