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Description
किस्सा लोकतंत्र
दुनिया-भर में श्रेष्ठ कही जानेवाली शासन-प्रणाली यदि ‘क़िस्सा’ बन जाए तो उसकी विश्वसनीयता सहज ही अनेक सवालों के घेरे में आ जाती है। भारतीय लोकतंत्र आज ऐसी ही स्थिति का शिकार है। ‘तंत्र’ के प्रति ‘लोक’ का विश्वास जैसे पूरी तरह डिग गया है।
लेकिन ऐसा हुआ क्यों ? भारतीय स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान और आज़ादी के तुरन्त बाद ऐसा कैसे हुआ कि ‘रामराज्य’ का महान आदर्श ‘रावण-राज्य’ में परिणत हो गया ? सुपरिचित कथाकार विभूति नारायण राय का यह उपन्यास भारतीय लोकतंत्र के इसी विरूपीकरण का तथ्यात्मक बयान है।
इसकी शुरुआत होती है पी.पी. नामक एक नेता की प्रेस-कांफ्रेंस से और समापन उसके चुनावी जुलूस से। लेकिन इस घटनान्तराल में लेखक ने पी.पी. के अतीत से लेकर वर्तमान तक के जिन कारनामों का उद्घाटन किया है, उससे इस लोकतांत्रिक शासन-पद्धति के आपराधिक आधार को दूर तक समझने में मदद मिलती है। यह पूरा ‘क़िस्सा’ दिलचस्प तो है ही, पाठकीय अनुभव-संवेदन को भी गहरे जाकर झकझोरता है और उस विकल्प की ओर इंगित भी करता है, जब एक निहत्था आदमी जन-बल के भरोसे ख़ूँखार शेर की आँखों में आँखें डालने का साहस जुटाकर उठ खड़ा होगा।
कहने की आवश्यकता नहीं कि एक भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र पर यह उपन्यास बेहद तीखी, लेकिन पूरी तरह जनतांत्रिक टिप्पणी है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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