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Description
स्वर्ग का उल्लू
समय-समय पर लिखे गए सप्रेजी के व्यंग्यजन्य लेखों का संकलन है। सप्रेजी ने समाज में दिखाई पड़ने वाली छोटी सी छोटी बातों और मानवीय हरकतों को अपने व्यंग्य का विषय बनाया है। जैसे गर्दन हिलाना, फोटो खिंचवाना, खर्राटे भरना, नाक से बोलना, नहाना और सोना। विषय छोटे है लेकिन इनके बहाने बातें बड़ी की गई हैं और वे भी इतने अनौपचारिक और सहज ढंग से आत्मीयता के साथ कि पढ़ने के तनाव का अहसास ही नहीं होता… हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य को हथियार कहा है, सप्रे ने उससे झाड़ू का काम लिया है-सामाजिक कुरीतियों, पाखंडों, गंदी हरकतों और आदतों को बुहार कर बाहर करने का काम।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2008 |
Pulisher |
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