Irdam-Girdam Aham Smrami

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Irdam-Girdam Aham Smrami

Irdam-Girdam Aham Smrami

375.00 325.00

In stock

375.00 325.00

Author: Prem Janmejai

Availability: 5 in stock

Pages: 176

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 9789386604477

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

इर्दम्-गिर्दम् अहम् स्मरामि

वरिष्ठ कथाकार चित्रा मुदूगल का कहना है कि प्रेम जनमेजय का ओढ़ना-बिछाना, सब व्यंग्य है। पिछले पच्चास वर्षों से, हिंदी साहित्य की व्यंग्य-दुनिया के इस सक्रिय योद्धा के पास हर मोर्चे की स्मृतियां जीवंत हैं। अपने इर्द-गिर्द से संजोई स्मृतियों ने, प्रेम जनमेजयी शैली में एकत्रित हो, ‘इर्दम्‌-गिर्दम्‌ अहम्‌ स्मरामि’ का रूप धारण किया है। इसमें व्यंग्य जगत की पाठशालाएं हैं जिन्होंने हिंदी व्यंग्य को ऊंचाईयां और सार्थक दिशा दी। बड़े व्यग्यकारों के छोटे-छोटे युद्ध भी हैं, एक दूसरे के साथ खेली जाने वाली शतरंजी चालें भी हैं। फेसबुक और व्हाट्स एप्प पर निरंतर गतिमान अति सक्रिय व्यंग्यकारों की आभासित उठापटक है। यानि प्रदूषण रहित आकाश है तो कुछ गर्द भी है। इन्हें पढ़ना ज्ञान-वृद्धि तो करेगा ही, कुछ गिरेबानों में झांकने का रोचक सुअवसर भी प्रदान करेगा।

प्रेम जनमेजय का कहना है – ‘इसे संस्मरण कह लें या फिर मेरी व्यंग्य यात्रा के पदचिह्न। ऐसे अमिट पदचिह्न  जिसे समय पोंछ नहीं पाया। मेरी व्यंग्य यात्रा में बहुत हैं जिनसे मैंने सीखा, जो मेरे अग्रज बन पूजनीय बने और मेरे सहयात्री बन साथ चलने का सुख देते रहे। इसका मकसद न तो कीचड़ उछालना है और न ही अपने देवता गढ़ना है।’ प्रेम जनमेजय ने अपनी स्मृतियों के एलब्म से तीन कोण प्रस्तुत किए हैं – मेरी पाठशालाएं, मेरे अग्रज और मेरे सहयात्री। परसाई, शुक्ल, जोशी, त्यागी और नरेंद्र कोहली पाठशालाएं हैं, गोपाल चतुर्वेदी, सूर्यबाला, अरविंद विद्रोही उनके अग्रज हैं तो ज्ञान चतुर्वेदी, हरीश नवल और सुरेश कांत इनके सहयात्री। इस त्रिकोण में तीनो गुण भी हैं – सत्व, रजस और तमस। इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ ऐसा है जो अनलिखा रह गया है पर इतना नहीं कि लिखा न जा सके। भविष्य के गर्भ में बहुत कुछ है जो जन्म लेगा।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

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