Dalit Aatmkatha Dalit Mahakavya
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Description
दलित आत्मकथा दलित महाकाव्य
हिन्दी साहित्य के दलित-धारा की विभिन्न विधाओं में आत्मवृत्त विधा बहुत सशख्त, प्रभावी एवं अत्यंत समाजोपयोगी है। इस बात का अनुमान हमें सबसे पहले दया पवार की आत्मकथा ‘अछूत’ पढ़ने के उपरांत हुआ। मूल मराठी ‘बलूंत’ से अनुवादित इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं कई दिन तक असहज रहा। इस तरह मैंने कई आत्मकथाएँ पढ़ीं, सभी के संघर्ष में मैं स्वयं को रखकर कभी इस पात्र के रूप में, कभी उस पात्र के रूप में खुद को महसूस किया।
मैंने पाया कि सचमुच दलित आत्मकथाएँ दलित चेतना, दलितों के उत्कर्ष, संघर्ष, संघर्ष एवं परिवर्तन के लिए दलित महाकाव्य बन सकती हैं। यहाँ गद्य-पद्य की सीमा में न पड़ते हुए मानव कल्याण हेतु महाकाव्य का जो प्रदेय होता है, वह ज्ञान मार्गदर्शन एवं समाज निर्माण की ऊर्जा आत्मकथाओं में निहित है। खासकर महात्वाकांक्षी संवेदनशील, उत्साही नवयुवक इन आत्मकथाओं के आलोक में अपने जीवन में आशातीत अविश्वसनीय परिवर्तन कर सकते हैं। दलित आत्मकथा की सौंदर्य चेतना, उनका भविष्य एवं वर्तमान बदल सकती हैं, उन्हें जीने की एक राह दे सकती है।
_ भूमिका से
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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