Shrikrishna Ras

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Shrikrishna Ras

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595.00 445.00

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595.00 445.00

Author: Vidyaniwas Mishra

Availability: 5 in stock

Pages: 192

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: ‎ 9789387889361

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

श्रीकृष्ण रस

श्रीकृष्ण शब्द में ही निहित है कि जो जहाँ है, वहाँ से खिंचे और जिस किसी देश-काल में वह है, उस दायरे से उसे बाहर निकाल दे, उसे न घर का रहने दे न घाट का ! पर इतनी सब समझ के बावजूद श्रीकृष्ण की ओर खिंचना और खिंचते ही अपनी पहचान खोना, एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर भारतीय मन में घटे बिना नहीं रहती। किसी को भी श्रीकृष्ण पर विश्वास नहीं होता, बल्कि ठीक-ठाक कहें तो हर किसी को अविश्वास ही होता है कि वे कभी अपने नहीं होंगे। वे विश्वसनीय हैं ही नहीं। उनके हर एक कार्य-कलाप में कोई-न-कोई ऐसा भाव है कि सब कुछ घट जाने पर ही लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं।

श्रीकृष्ण-चरित में कुछ अलौकिक है ही नहीं, जितनी अलौकिकता है, वह सब एक खेल है। वे बचपन से ही कई ऐसे कार्य करते हैं जिन पर विश्वास नहीं होता, चाहे जन्मते ही अपने पैर से यमुना के प्रवाह को फिर शिथिल कर दिया हो, पूतना का दूध पीकर उसका सारा जश्हर, सारा द्वेष पी लिया हो। तृणावर्त के रूप में आयी हुई आँधी को जिसने दबोच लिया हो, छकड़ा बन करके आसुरी लीला करने वाले शकटासुर को तोड़-फोड़ कर रख दिया हो, एक के बाद दूसरे अनेक रूप धारण करने वाले असुरों को जिसने खेल-खेल में पछाड़ दिया हो, जिसने पूरे व्रज को अपनी शरारतों से परवश कर दिया हो, बायें हाथ की कानी उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया हो और जो कालिया नाग के फनों के ऊपर थिरक-थिरक कर नाचा हो, उस बालक के ऊपर कौन विश्वास करेगा, कोई विश्वास करता भी हो, तो वह विश्वास हल्की-सी मुस्कान से धो देते हैं और मन में यह विश्वास भर देते हैं कि आश्चर्य तो घटित ही नहीं हुआ, ऐसा तो खेल में होता ही रहता है।

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2018

Pulisher

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