Pani Jo Patthar Peeta Hai
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पानी जो पत्थर पीता है
‘पहले बरतन, फिर मन-स्त्रियाँ माँजे चली जा रही हैं’- अनामिका कहती हैं। उनका मानना है कि अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों में सत्याग्रह को एक नयी धार देता है स्त्री-विमर्श ! ग्लोरियस क्रांति के बाद का सर्वाधिक अहिंसात्मक आंदोलन यही है जो मानकर चलता है कि एक दमन-चक्र का जवाब दूसरा दमन-चक्र नहीं है किन्तु यह बात भी सच है कि ‘स्पेस’ अपने-आप कोई देता नहीं, खुद बढ़कर ले लेना पड़ता है-‘साम-दाम’ आजमा चुकने के बाद ही ‘दण्ड-भेद’ की जरूरत पड़ती है !
ललित निबन्धों की लुप्तप्राय विधा यहाँ नयी साँसें भरती जान पड़ती है ! जानदार भाषा, सहज रसनिक्षेप के साथ पते की बात कहने की कला अनामिका ने साध ली हैं। दैनन्दिन जीवन की विडम्बनात्मक स्थितियाँ मार्मिक स्ट्रोक्स और बतरस के साथ ये सामने रखती हैं !
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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