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Description
स्त्री और सेंसेक्स
आधुनिक और सतर्क स्त्री-विमर्शकार रंजना जायसवाल की यह विचार कृति ‘स्त्री और सेंसेक्स’ एक नई भाषा में नया संवाद पैदा करती है।
परंपरावादी क्यों ‘सेक्स’ शब्द को ही गंदा समझने लगते हैं, स्त्री-देह को अपनी इच्छा से इस्तेमाल करने की भावना कैसे सत्ताधारियों को प्रतिबंध लगाने की छूट दिलाने लगती है, क्यों एक स्त्री के ही मन में दूसरी के प्रति ईर्ष्या, उपेक्षा या घृणा उत्पन्न होती है ? रूढ़िवादियों और उदारवादियों के बीच स्त्री की स्थिति में कितना परिवर्तन आ पाया है, स्त्री-अनुपात में तेजी से हो रही कमी हमें कैसे भविष्य की ओर ले जा रही है।
रंजनाजी के विचार की परिधि में यह भी आता है कि कार्पोरेट जगत की स्त्री का सत्य क्या है और स्त्री के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पा लेना ही पर्याप्त नहीं है, वह तभी पूर्ण होगी जब अपने अंतिम उद्देश्य को प्राप्त कर ले।
यह पुस्तक जहां ओढ़े हुए अंधविश्वास से मुक्ति पाने का आह्वान करती है, वहीं स्त्री-विमर्श की वर्तमान दशा पर भी विचार करती है। जहां यह प्रेम की जगह लेती लालसा को परखती है, वहीं इस जरूरत पर बल देती है कि आज के स्त्री शक्ति को मजबूत किया जाए। स्त्रियां पुरुष सत्ता के षड्यंत्रों को समझें, भले ही वह फिर स्त्री-चरित्रों के जरिये जड़ें क्यों न जमाए हों !
अपने समय में घट-बढ़ रहे तमाम जरूरी मुद्दों को एक खुली नजर से देखने और विचारने का काम किया है, लेखिका ने। नई पीढ़ी और शोधार्थियों के लिए रंजना जायसवाल की यह पुस्तक स्त्री विमर्श की नयी बयार लिए हुए है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher |
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