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Description
अगनपाखी
भुवन मोहिनी की कथा नयी नहीं है। अनेक उपन्यासों, फिल्मों और लोककथाओं में रूप बदल-बदलकर आती रही है। सम्पत्ति के लिए भाइयों में झगड़े, पत्नियों और विधवाओं के हत्या-अनुष्ठान भारतीय सामन्ती परिवारों में हज़ारों बार दोहराये जाते रहे हैं। ऐसे ही एक सामन्ती परिवार के अधपगले लड़के भुवन का विवाह कर दिया जाता है और वह फिर वही सामन्ती दाँवपेंच। मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी पूर्व-परिचित दिलचस्प क़िस्सागोई के साथ इस कथा को एक नया कोण दिया है जिसके पीछे वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यास विराटा की पद्मिनी की अनुगूँजे हैं। इस तरह संस्कार बिम्बों को जगाती हुई यह कहानी नयी-पुरानी दोनों एक साथ हैं। लोककथाओं-लोकगीतों से गूँथी अगनपाखी की भाषा फिर-फिर नई होती है-अपनी आग में जलकर जीवित हो। उठने वाले पक्षी की तरह। इदन्नमम, चाक, अल्मा कबूतरी, झूला नट के बाद यह कथा मैत्रेयी पुष्पा की औपन्यासिक यात्रा का एक जबर्दस्त मोड़ है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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