Sampurna Kahaniyan : Akhilesh
Sampurna Kahaniyan : Akhilesh
₹499.00 ₹415.00
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Author: Akhilesh Tatbhav
Pages: 534
Year: 2021
Binding: Paperback
ISBN: 9789390971954
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Description
सम्पूर्ण कहानियाँ : अखिलेश
अखिलेश ने हिन्दी कहानी को एक नई तरतीब दी और पठनीयता की तमाम शर्तों को पूरा करते हुए उसे इस क़ाबिल बनाया है कि वह यथार्थ को अधिक निर्मम निगाह से देख सके। उनका कथाकार संसार की वास्तविकता को देखने के लिए अपने टेलिस्कोप और माइक्रोस्कोप उस बिन्दु पर स्थित करता है जहाँ से हमारे वक़्त की पीठ का नंगापन हर हाल में ज़्यादा तीखा दिखाई देता है।
ग़लत की भव्यता से अखिलेश की चिढ़ और सही की निरीहता के प्रति उनकी पक्षधरता उनके विवरणों तक में चयनात्मक भूमिका निभाती है जिसके चलते कहानी पूरी होने से पहले भी हमें कई बार अपना पक्ष चुनने के बारे में चेताती चलती है। वे यह भी सावधानी बरतते हैं कि हम बाहरी विवरणों के तमाशबीन भर होकर न रह जाएँ, और इसके लिए उनका कथाकार संत्रास के कुछ अमूर्त स्ट्रोक अनायास ही पाठक के अवचेतन तक पहुँचा देता है, जो तब ज़्यादा टीसते हैं जब हम पाठक की भूमिका से निकलकर वापस नागरिक-सामाजिक होने जाते हैं।
‘शापग्रस्त’ और ‘चिट्ठी’ जैसी उनकी कहानियों ने हिन्दी कहानी की फ़ार्मूलाबद्धता को उस समय भंग किया जब वह वैचारिक एकरैखिकता की झोंक में अपने आसपास फैले यथार्थ की बहुत सारी जटिलताओं को छोड़ती चल रही थी। तेजी से बदलने के लिए अकुलाते समाज के अधिकतम को पकड़ने के लिए जिस तरह की निगाह और भाषा-भंगिमा की ज़रूरत थी, अखिलेश ने उसे लगभग सबसे पहले सम्भव किया।
सत्ता और शक्ति की विभिन्न संरचनाओं को लगातार निर्मित और पोषित करने के अभ्यस्त हमारे मन-मस्तिष्क को अखिलेश ने अपनी विखंडनात्मक त्वरा से देखने का एक नया संस्कार दिया है। अखिलेश का कथाकार न सिर्फ़ मौज़ूदा यथार्थ को देखने में सफल रहा है बल्कि उसके आगामी तेवरों का संकेत भी दे पाया है।
यह संचयन कहानीकार के रूप में अखिलेश की विकास प्रक्रिया का ही नहीं, बीते क़रीब चार दशकों में एक संस्था के रूप में भारतीय समाज के बदलने-बढ़ने और बनने-टूटने के क्रम का भी साक्षी है।
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
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Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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