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Description
अर्द्धनारीश्वर
‘अर्द्धनारीश्वर’ व्यक्तिमन, समाजमन एवं अंतर्मन के विविध स्तरों पर नारी और नर थे इन्हीं के एकमएक सुर और स्वर-मिलन की प्राप्ति का प्रयास है यह उपन्यास। वही जाति-पाति और धर्म को समस्या, वही विवाह, तलाक, बलात्कार की समस्या, वही नारी-शोषण, उत्पीडन, वही टूटते-बिखरतें जीवन की कहानी, किन्तु मुक्ति के लिए ‘कोई तो’ की प्रतीक्षा नहीं है। यहीं लेखक ने समाधान के रूप में एक वृहत्तर रूपरेखा की सर्जना की है।
‘अर्द्धनारीश्वर ‘ का अभिप्रेत नारी और नर की समान सहभागिता को प्राप्त करना है। इसके लिए जरूरी है, एक-दूसरे को अपनी-अपनी दुर्बलताओं व सबलताओं के साथ स्वीकार करना तथा मान लेना कि रचना के लिए प्रकृति व पुरुष का मिलन भी जरूरी है ।
मूल समस्या तो पुरुष की है, उसके पौरुषिक अहम् की, जो उसे ‘बेचारा’ बना देती है। सहज तो इसे ही बनाना है। इसी की असहजता से स्त्री बहुत-से बंधन तोड़कर आगे निकल आई है। लेकिन बंधनहीन होकर किसी उच्छ्रंखल को रचना करना लेखक का अभिप्रेत नहीं है, बल्कि बंधनो की जकड़न को समाप्त कर प्रत्येक सुर को उसका यथोचित स्थान देकर जीवन-राग का निर्माण करना है। अजित के शब्दों में लेखक कहता है :
“मैं सुमिता को अपनी दासता से मुक्त कर दूँगा। मैं उसकी दासता से मुक्त हो जाऊँगा। तभी हम सचमुच पति-पत्नी हो सकेंगे।”
इसी स्वयं की दासता से मुक्ति का नाम है, ‘अर्द्धनारीश्वर’।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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