Grameen Samaj

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340.00 275.00

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Author: Sharat Chandra Chattopadhyay

Availability: 5 in stock

Pages: 232

Year: 2012

Binding: Hardbound

ISBN: 9788189859305

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

ग्रामीण समाज

वेणी घोषाल ने मुखर्जी महाशय के घर में प्रवेश करते ही एक पौढ़ा स्त्री को देखा, तो उसे पहचानकर प्रमाण करता हुआ पूछने लगा, ‘‘मौसी, रमा कहां है ?’’

पूजा कर रही मौसी ने रसोईघर की ओर इशारा किया, तो वेणी उधर चल दिया द्वार पर पहुँचकर तथा रमा को देखकर उससे बोला, ‘‘रमा, तुमने कुछ करने का निश्चय तो ले लिया होगा ?’’

खौलते तेल की कढ़ाई को चूल्हे से उतारकर और नीचे रखकर रमा ने पूछा, ‘‘भैया, आप किस विषय में मेरे निर्णय लेने की पूछ रहे हैं ?’’

वेणी बोला, ‘‘मैं तारिणी चाचा के श्राद्ध के विषय में तुम्हारे विचार जानना चाहता था। रमेश तो कल यहां पहुंच गया है और सुना है कि वह पूरी धूमधाम से अपने पिता का श्राद्ध करना चाहता है। तुम जाओगी या नहीं ?’’

चकित हुई और आँखें फाड़कर देखती रमा बोली, ‘‘मैं तारिणी घोषाल के घर जाऊंगी तुमने सोच कैसे लिया ?’’

लज्जा का प्रदर्शन करता हुआ वेणी बोला, ‘‘बहिन, समझता तो मैं भी हूं कि तुम उधर किसी प्रकार नहीं जाओगी,, किन्तु सुना है कि वह स्वयं एक-एक घर जाकर लोगों को निमन्त्रण दे रहा है। दुष्टता में तो वह अपने बाप के भी कान काटता है, किन्तु यदि वह तुम्हारे पास आकर तुमसे अनुरोध करता है, तो तुम्हारा उत्तर क्या होगा ?’’

नाराज़गी के स्वर में रमा बोली, ‘‘मेरे मुंह खोलने की नौबत ही नहीं आयेगी दरबान बाहर से ही उसे चलता कर देगा।’’

पूजा में लगी मौसी ने सलाह-मशविरा करते वेणी और रमा को सुना तो पूजा छोड़कर दौड़ती हुई इधर ही आयी। अपने भानजे के मुंह से उसकी बात छीनकर गरजती-लरजती हुई वह बोली, ‘‘दरबान को यह ज़िम्मा क्यों दे रही हो बेटी ? क्या मैं मर गयी हूं ? उस पाजी शैतान को ऐसी खरी-खरी सुनाऊंगी की उसे छठी का दूध याद आ जाएगा और फिर कभी इस घर में पैर रखने का सपना भी नहीं ले सकेगा। तारिणी घोषाल का लड़का हमारे घर हमें निमन्त्रण देने आयेगा ? वेणी,

तुम यह कैसी अनहोनी बात कर रहे हो ? मैं बीती बातें कुछ भी नहीं भूलीं हूं। तारिणी हमारी रमा के साथ रमेश का विवाह यह सोचकर रचा रहा था कि बाप की इकलौती लड़की की सारी सम्पत्ति पर उनका अधिकार हो जायेगा। वस्तुतः उस समय तक यतीन्द्र का जन्म नहीं हुआ था। जब यदुनाथ मुखर्जी ने आचार्य घोषाल का प्रस्ताव ठुकरा दिया तो दुष्ट

तारिणी ने भैरव आचार्य से ऐसे अभिचार-परक अनुष्ठान, जप-तप, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास तथा टोने–टोटके कराये कि फूल-सी मेरी लाड़ली छह महीने से भी पहले ही सुहागिनी से दुर्भागी हो गयी। उसकी हाथ की चूड़ियां टूट गयी और माथे का सिन्दूर पुंछ गया। देखो न, यह छोटी जाति का भड़वा अपनी औकात भूलकर ऊँची जाति वालों से सम्बन्ध जोड़ने चला था ! हरामजादे की मौत भी ऐसी हुई कि किसी का कन्धा तक नसीब नहीं हुआ। इन छोटी जाति वालों की हिम्मत तो देखो।’’

यह कहकर मौसी कुश्ती लड़ने से थके- हारे पहलवान की तरह हांफने लगी।, मौसी के मुंह से बार-बार तारिणी घोषाल की छोटी जाति का बताना सुनकर वाणी माधव अपने को लज्जित अनुभव करने लगा; क्योंकि तारिणी उसका सगा चाचा था और वह स्वयं भी घोषाल था। स्थिति को संभालती हुई रमा मौसी से बोला, ‘‘तुमने किसी जाति को बड़ा-छोटा बताने की क्या रट लगा रखी है ? क्या किसी जाति में उत्पन्न होना-न होना मनुष्य के अपने वश की बात है ‍? सत्य तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी जाति ऊंची है।’’

सकुचाता हुआ वेणी बोला, ‘‘रमा तुम्हारा कथन सही है। मौसी की बात में दम है। इतने ऊंचे परिवार की लड़की को बहू बनाने की सोचना, मेरे चाचा की ग़लती थी। यह उनकी नासमझी थी। यह कहते हुए मुझे जरा भी झिझक नहीं होती। जहां तक उनके द्वारा जादू-टोना किये जाने की बात है, उस पर भी मैं अविश्वास नहीं करता; क्योंकि वास्तविकता यह है कि ऐसा कोई अधम और निकृष्ट कार्य नहीं जिसके तारिणी चाचा द्वारा किये जाने को सम्भव न माना जा सके और फिर भैरव आचार्य भी तो परले दर्जे का गिरा हुआ नीच व्यक्ति है, वह तो पैसे के लिए किसी का भी अनिष्ट कर सकता हैं। आजकल वह दुष्ट भैरव रमेश का चमचा बना हुआ हैं।’’

मौसी ने पूछा, ‘‘वेणी, यह रमेश दस-बारह साल के बाद गांव लौटा है, अब तक यह कहां रहा है ?’’

वेणी माधव बोला, ‘‘मौसी, मै क्या जानूं ? चाचा के परिवार के साथ हमारा सम्बन्ध भी 36 का था। कोई कहता है कि रमेश इतने दिनों बम्बई में था, तो कोई किसी और नगर का नाम लेता है। किसी का ख़याल है कि वह वकालत पास कर आया है, तो कोई कहता है कि वह डॉक्टरी सीखकर आया है। कुछ लोग तो कहते हैं कि उसने कुछ भी नहीं किया है, खाली भाड़ झोंकता रहा है। साला बहुत बड़ा शराबी है। यहां आने पर उसकी आंखें जपाकुसुम के फूल की तरह सुर्ख़ थीं।’’

मौसी बोली, ‘‘यदि यह सत्य है, तो उसे घर में घुसने ही नहीं देना चाहिए।’’

वेणी ने प्रसन्न भाव से कहा, ‘‘मौसी, बिल्कुल ठीक कहती हो। उसकी तो सूरत देखना भी पाप है। रमा तुम रमेश को भूल तो नहीं गयीं, उसकी याद तो है न ?’’

रमेश के साथ अपने सम्बन्ध की चर्चा से भीतर-ही-भीतर लजाती हुई और बाहर से मुसकराती हुई रमा बोली, ‘‘अरे, इसमें भूलने की क्या बात है ? शीतल तल्ले वाली पाठशाला में हम दोनों साथ-साथ ही तो पढ़े हैं और फिर आयु में भी वह मुझ से कोई अधिक बड़े तो नहीं हैं। उनकी माँ मुझे बहुत प्यार करती थी, उसकी मृत्यु तो मुझे भली प्रकार से याद है ।’’

भड़क उठी मौसी बोली, ‘‘आग लगे उसके प्यार को। बेटी, यह प्यार कोरा सब दिखावा था। अपना काम निकालने की चाल थी। वे तो बस इसी फिराक़ में थे कि किसी प्रकार तुम उनके चंगुल में फंस जाओ।’’

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2012

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