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Description
वर्षा की सुबह
गहरे उद्वेगों, सूक्ष्म संवेदनों, और शब्दों के माधुर्य तथा संगीत से फूटती हैं सीताकांत महापात्र की कविताएँ। दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यापार, प्रकृति की अपार लीलाएँ, दिक्काल का अनन्त विस्तार—हम इनमें एक गहरे मानवीय राग के साथ देख-सुन सकते हैं। इनमें वर्तमान में खड़े रहकर बहुत पीछे लौटना भी है तथा बहुत आगे देखना भी। समुद्र, आकाश, धरती, सूरज-चद्रमा, दूब, पेड़-पौधे, फल-फूल, पशु-पक्षी, ऋतुचक्र—हमें जिस जीवन-बोध से इन कविताओं में जोड़ते हैं, वह अपूर्व है। मृत्यु इस जीवन-बोध पर अपनी छाया डालती ज़रूर है, पर वह इस जीवन-बोध को न तो परास्त कर पाती है, न ही भयभीत। और इस संग्रह की कविताओं में तो ‘मृत्यु मानो लम्बी छुट्टी पर’ भी
है।
सीताकांत महापात्र की कविताओं में आख्यानों के प्रसंग भी इस जीवन-बोध को और गहरा करने के लिए ही हैं। इन कविताओं में मानवीय सम्बन्धों का भी एक विशिष्ट आकलन है जो जीवन-संग्राम के ऐन बीच, हमें गहरे मानवीय भरोसे, विश्वास और सम्बल की ही प्रतीति कराता है। कवि-संवेदना की व्याप्ति निकट से निकट और दूर से दूर की चीज़ों पर कुछ इस तरह से है कि हम एक ‘यात्रा’ पर होने का अनुभव करते हैं—ऐसी यात्रा, जो आदि-अन्तहीन लगती है, पर जिसके कविता-पड़ाव ‘शून्यता को (भी) शब्दों की सस्नेह श्रद्धांजलि’ बन जाते हैं। और बन जाते हैं एक ऐसा उपक्रम जहाँ, ‘हमारा काम है केवल जोड़ते चले जाना सान्त्वना भरे सरल शब्द’। हम सब जानते हैं कि सान्त्वना भरे सरल शब्दों को जोड़ना आसान नहीं होता। उसके लिए चाहिए धीरज, साहस, गहरा प्रेम, आश्वस्ति और भाषा के प्रति एक अकुंठित तीखी तृष्णा। यह सब सीताकांत महापात्र की कविता में हैं, और इनकी मात्रा में लगातार बढ़ोतरी होती गई है। प्रमाण हैं इस संग्रह की कविताएँ जो उनके ओड़िया में कुछ अरसा पहले प्रकाशित ‘वर्षा सकाल’ संग्रह का हिन्दी अनुवाद हैं।
ओड़िया से हिन्दी में प्रकाशित सीताकांत महापात्र का यह एक महत्त्वपूर्ण संग्रह है।
इसका अनुवाद, सीताकांत महापात्र की कविता और ओड़िया साहित्य के जाने-पहचाने अनुवादक राजेन्द्रप्रसाद मिश्र ने कवि के साथ मिल-बैठकर किया है। ज़ाहिर है कि इससे इनकी प्रामाणिकता और बढ़ गई है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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