Pratishodh

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Author: Savarkar

Availability: 5 in stock

Pages: 130

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9789386336699

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

प्रतिशोध

प्रतिशोध आक्रमणदग्ध राष्ट्र का जीवनबिन्दु है। प्रतिशोध राष्ट्र की अमरता की संजीवनी है। प्रतिशोध पौरुष का लक्ष्ण है। प्रतिशोध से भय खाने वाला राष्ट्र टिक नहीं सकता। थोथे, कल्पनारम्य सिद्धान्तों के भ्रमजाल में पड़कर प्रतिशोध से घृणा करने वाला राष्ट्र जीवित नहीं रह सकता। प्रतिशोध की भावना से रहित होने वाला राष्ट्र पौरुषहीन होता है। इतिहास साक्षी है। गत एक हजार वर्षों के पश्चात इस्लामी एवं ईसाई राष्ट्र भारत पर आक्रमण करते आये हैं। उन आक्रमणों के समय-समय पर यथाशक्ति प्रत्युत्तर भी दिया गया है। तथापि, वास्तविकता यह है कि, हम आक्रमित रहे हैं और हैं भी। निश्चित ही राष्ट्र के लिए यह लज्जा की बात है।

प्राक्कथन

प्रतिशोध ! प्रतिशोध आक्रमणदग्ध राष्ट्र का जीवन बिन्दु हैं। प्रतिशोध राष्ट्र की अमरता की संजीवनी है। प्रतिशोध पौरुष का लक्ष्ण है। प्रतिशोध से भय खाने वाला राष्ट्र टिक नहीं सकता। थोथे, कल्पनारम्य सिद्धान्तों के भ्रमजाल में पड़कर प्रतिशोध से घृणा करने वाला राष्ट्र जीवित नहीं रह सकता। प्रतिशोध की भावना से रहित होने वाला राष्ट्र पौरुषहीन होता है। इतिहास साक्षी है। गत एक हजार वर्षों के पश्चात इस्लामी एवं ईसाई राष्ट्र भारत पर आक्रमण करते आये हैं। उन आक्रमणों के समय-समय पर यथाशक्ति प्रत्युत्तर भी दिया गया है। तथापि, वास्तविकता यह है कि, हम आक्रमित रहे हैं और हैं भी। निश्चित ही राष्ट्र के लिए यह लज्जा की बात है। परन्तु उसके साथ यह भी उतना ही सत्य है कि हम मरे नहीं हैं। संसार के इतिहास पटल से ही नहीं तो भूपटल से हमें नामशेष करने के आक्रान्ताओं के प्रबल प्रयास विफल रहे हैं।

और इसका श्रेय उन अगणित वीरों को है, जिन का साहस पराजय के उपरान्त भी परास्त नहीं हुआ और जिन्होंने पराजय की पीड़ा को अपने हृदय में पाल कर प्रतिशोध की अग्नि का प्रसवन किया, प्रसरण किया। यदि समय समय पर इन वीरों का अवतरण न होता तो निश्चय ही भारत, इतिहास के पृष्ठों पर उर्वरित रहता। हिन्दू सम्राट चन्द्रगुप्त से लेकर क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर तक के ही नहीं अपितु उसके पूर्ववर्ती एवं परवर्ती अनेक सम्राटों ने, सेनानियों ने, सैनिकों ने, क्रान्तिकारियों ने, देशभक्तों ने प्रतिशोध की अग्नि को एक पल भी बुझने नहीं दिया और उसी के परिणामस्वरूप पराजित भारत अवसर आते ही अपनी शक्ति को पुनः संजोकर, विलम्ब से क्यों न हो, पर शत्रु पर टूट पड़ता था और अपने गत पराजय का प्रतिशोध लेने में न चूकता था।

इस प्रकार पराजय का प्रत्येक इतिहास प्रतिशोध को जन्म देता था और फिर प्रतिशोध से विजय का नूतन इतिहास निर्मित होता था।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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