Don Quixote

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400.00 350.00

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Author: Chavinath Pandey

Availability: 4 in stock

Pages: 514

Year: 2014

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126021468

Language: Hindi

Publisher: Sahitya Academy

Description

डान क्विग्जोट

डान क्विग्जोट प्रख्यात स्पानी कथाकार मिग्यु द सरवांतीस साविद्र द्वारा लिखित कालजयी स्पानी उपन्यास एल इनखेनिओसो इदाल्गो दोन किखोते दे ला मांचा का हिन्दी अनुवाद है। यह कृति विश्व साहित्य के श्रेष्ठतम उपन्यासों में से एक मानी गयी है। हालाँकि सरवांतीस ने यह स्वीकार किया है कि उपन्यास का उद्देश्य शौर्यगाथात्मक पुस्तकों का उपहास था,जिसके कारण उन दिनों यह लोकप्रिय भी हुआ। लेकिन भरपूर कल्पनाशीलता और तत्कालीन सामाजिक साहित्यिक परिदृश्य का उपहास करने की अदम्य भावना के कारण उनका सामान्य व्यंगोद्देश्य पीछे छूट गया- उपन्यास शौर्य गाथा युग के अंतिम समय के स्पानी जीवन, सोच और अनुभवों का सूक्ष्म चित्रण उपलब्ध कराता है। विश्व के कथा साहित्य में शायद ही कोई ऐसा और पात्र हो, जिसने प्रस्तुत उपन्यास के करूण विदूषक नायक डान क्विग्जोट की भाँति पाठकों को साथ-साथ हँसा-रूलाकर उनके ह्रदय में घर कर लिया हो। आयरिश कवि डब्लू,बी.येट्स के अनुसार, कोई भी नाटककार न तो आज तक किसी ऐसे चरित्र की रचना कर सका है, न भविष्य में कर सकेगा, जो मंच से बाहर आकर हमारा उस तरह साथी बन जाए, जैसे डान क्विग्जोट इस पुस्तक के पन्नों से बाहर आकर हमारा साथी बना जाता है।” सन् 2005 ईस्वी में अपने स्पानी प्रकाशन की 400 वीं वर्षगांठ मना रहा .यह उपन्यास विश्व की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में अनूदित होकर आज भी पाठकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

भूमिका

मुरझाये चेहरे और लालटेन-से जबड़े वाला डान क्विग्जोट एक लस्टम-पस्टम और सींकिया व्यक्ति था, जो अपना जंग-खाया कवच धारे अपने मरियल घोड़े रोजिनाण्टे पर चढ़ा डोलता था। हमारे जीवन में वह आज भी अपने पेटू अनुचर सैंकोपांका के साथ अपना भाला ताने घोड़े पर सवार दौड़ रहा है।

‘डान क्विग्जोट’ में हमें अपने जीवन की सातों अवस्थाओं के लिए सन्देश प्राप्त होता है : स्कूल के दिनों में श्रोवाटाइड के कुत्ते की भांति कम्बल में लोट-पोट होते सैंकों का दृश्य देखकर हँसी के मारे हमारे पेट में बल पड़ जाते हैं, कालेज के नए विद्यार्थी के रूप में हम प्रेमाहत कार्डेनिक और हरित-नयना लुसिण्डा के आख्यान की ओर आकर्षित होते हैं, और जब हम अपनी प्रेमिका, की भृकुटियों पर विषाद-भरे गीत रचने लगते हैं तो हमारा ध्यान चतुर डोरोथिया की ओर जाने लगता है। युद्धकाल में, जब हम रणभेरी के आह्वान पर गाँव-गाँव से जवानों को चल पड़ते देखते हैं तो क्या हमें उस छोकरे की याद नहीं आ जाती जो डान क्विग्जोट और सैंकों को रास्तें में जाता अकेला मिला था, जो कन्धे पर रखी तलवार के सहारे पोटली लटकाए गाता चल रहा था :

समरभूमि में जाता हूं मैं क्योंकि नहीं है पैसा

पैसा पास अगर होता तो क्या मैं करता ऐसा

और भला कौन है जो अपने विश्वविद्यालय के जीवन में सालामान्का विश्वविद्यालय के उस विद्यार्थी सैम्सन कैरास्को की पग-पग पर याद न करता हो, जो डीलडौल में अनोखा न हो, पर जो बहुत बड़ा मसखरा था। और जब हम अधेड़ावस्था में पहुंचते हैं और अँधेरे वन में भटकने की दाँतें द्वारा निर्धारित आधी अवधि पार कर चुकते हैं, तो इस अमर रचना का द्वितीय खण्ड हमें उस सर्वव्यापी दृष्टि की झलक प्रदान करता है जो हमें शेक्सपियर और मौण्टेन में मिलती है।

हमें यह बराबर बताया जाता है कि यह पुस्तक प्राचीन प्रेमाख्यानों पर व्यंग्य हैं, और निस्सन्देह आंशिक रूप से यह बात सच है, क्योंकि सरवान्तीस ने ह्रासोन्मुखी अमर्यादित मध्ययुगीन वीर-विलासिताओं पर व्यंग्य जरूर किया गया है, पर वे गौल के अमादिस और चार्ल्स पंचम, सन्त इग्नातियस, सन्त टैरेसा आदि सोलहवीं शताब्दी के प्रखर व्यक्तियों के समान भाव से प्रशंसक भी थे। यह कहना उचित होगा कि सरवान्तीस ने अपना सारा जीवन वीर-विलास की भावना में बिताया था, और यदि डान क्विग्जोट सारे प्रेमाख्यानों को उखाड़ने में सफल हो सका तो इसका कारण यही है कि वह स्वयं भी एक प्रेमाख्यान है। यही नहीं, वह अन्य प्रेमाख्यानों से बढ़कर है, क्योंकि वह यथार्थ जगत् की भूमि पर टिका है।

‘डान क्विग्जोट’ के लेखन के रूप में विख्यात होने के बहुत पहले से ही सरवान्तीस महान् व्यक्तित्व के धनी और वीर थे। जीवन का चित्रण करने के पहले उन्होंने अपने जीवन के सबसे मूल्यवान वर्ष जीवन से शिक्षा लेने में बिताये थे। उन्होंने अपने जीवन में उन्हीं विषम परिस्थितियों के साथ प्रवेश किया था जो शेक्सपियर, डिकेन्स और बर्नार्ड शा के साथ लगी थीं, क्योंकि उनके माता-पिता निर्धन थे। अपने प्रारम्भिक जीवन की रकता से सरवान्तीस ने अपने परिजनों के प्रति उदारता और विनम्रता सीखी और परिवारिक सहयोग का मूल्य पहचानना सीखा। जो हो, निर्धनता का करुण प्रसंग उनकी समस्त रचनाओं में लगातार व्याप्त मिलता है।

सरवान्तीस को इस बात पर गर्व था कि उन्होंने सन् 1571 में लेपाण्टो के उस युद्ध में भाग लिया था जिसमें आस्ट्रिया के डान जान के भूमध्यसागर में तुर्की की शक्ति का समूल नाश कर दिया था। विजय की उस संध्या में वे बड़ी वीरता से लडे़ थे और घायल हो गए थे, उनका बायाँ हाथ चकनाचूर हो गया था और उनकी छाती में गोलियों से दो घाव हो गए थे।

दुर्भाग्य कदम-कदम पर पीछा करता रहा। जब वे पदोन्नति पाने के लिए स्पेन लौट रहे थे तो उनके बजरे पर अचानक आक्रमण हुआ और उन्हें बन्दी बनाकर एल्जियर्स ले जाया गया।

पाँच वर्ष के अपने बन्दी-जीवन में सरवान्तीस ने कारागार से भाग जाने का चार बार प्रयत्न किया और हर बार उनको और उनके साथियों को शत्रु-सैनिकों ने घेरकर पकड़ लिया। लेकिन पकड़े जाने पर हर बार उन्होंने पलायन का सारा अपराध अपने सिर ले लिया।

उनका शौर्य और त्याग इतना विलक्षण था कि जब सन् 1580 में उन्हें ट्रिनटरियन पादरियों ने उत्कोच देकर छुड़वा लिया तो उनके बंदी साथियों ने उनके वीरत्वपूर्ण आचरण और व्यवहार का गुड़गान करते हुए एक दास्तावेज पर हस्ताक्षर किये थे। यह दस्तावेज आज भी उपलब्ध है।

स्पेन लौटने पर लेपाण्टो के इस टोंटे नायक सरवान्तीस का जीवन अभावों और निराशाओं की कहानी बन गया। यद्यपि सन् 1584 में उन्होंने कैटेलीना नामक एक उन्नीस वर्षीय बाला से विवाह कर लिया था, पर वे अपनी पत्नी के लिए एक मामूली -सी गृहस्थी जोड़ने में भी असमर्थ रहे और विवश होकर शासन के लिए रसद जुटाने के काम पर अण्डालुसिया और ला मान्चा में घूमते रहे। सन् 1587 से लेकर अगले पन्द्रह वर्षों तक सैविले उनका अड्डा बना रहा जहाँ से वे गाँव-गाँव घूम-घूमकर रोटी गेहूं, जौ और तेल इकट्ठा करते। कभी-कभी उन्हें फसले हथियाने के कारण किसानों के उग्र प्रदर्शन का और मठाधीशों के बहिष्कार का सामना करना पड़ता था।

अपने निराले विनोदपूर्ण ढंग से सरवान्तीस ने हमें बताया है कि उनके नायक डान क्विग्जोट का जन्म बंदीग्रह में हुआ था जहाँ दुनिया भर की दीनता बसती है और सारी दर्द-भरी आवाज़ें घर कर लेती हैं।

यह सन् 1597 के उस प्रसंग का उल्लेख है जब सरवान्तीस ऋण के कारण सैविले जेल में बन्द थे और जब उन्हें ला मान्चा के इस विख्यात सज्जन का चरित लिखने की प्रेरणा हुई थी।

उपन्यास का पहला खण्ड सन् 1605 में प्रकट हुआ था, और छः महीने बीतते न-बीतते डान क्विग्जोट और उनके अनुचर सैकों दोनों की स्पेन एवं आसपास के देशों में धूम मच गई। यहाँ तक की समुद्र-पार इंडीज में भी दोनों प्रसिद्ध हो चुके थे और स्पेन में पाठकों के पत्र आने लगे थे कि पुस्तक का नाम बदलकर ‘डान क्विग्जोट और सैंकोपांका’ कर देना चाहिए; क्योंकि उनकी राय में सैकों का भी उतना ही महत्त्व है जितना उनके मालिक का, और सैकों में विनोद की मात्रा अपने मालिक से भी अधिक है।’

सच्चे अर्थों में विश्व के प्रथम उपन्यासों में अन्यतम इस उपन्यास की देश-विदेश में इतनी ख्याति और सफलता के बावजूद सरवान्तीस ने इसका दूसरा खण्ड पूरे दस वर्ष बाद लिखा तो झींककर यह भी जोड़ दिया : ‘बीमारी के अलावा धन के अभाव ने भी मेरी कमर तोड़ रखी है।’

इस समर्पण में सिर्फ दान-दक्षिणा की ही याचना नहीं थी, आश्वसन की भी माँग थी, क्योंकि जब वे अपने उपन्यास का दूसरा और अन्तिम खण्ड लिख रहे थे तभी उन्हें पता चल गया था कि टेरगोना के किसी एलोन्सो द एवेलानेडा ने एक नकली ‘डान क्विग्जोट’ प्रकाशित करके यह प्रचारित कर दिया है कि वह पूर्व-प्रकशित उपन्यास की ही अगली कड़ी है।

अगले ही वर्ष सन् 1616 में 23 अप्रैल शनिवार को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के दस दिन बाद ही इंग्लैंड (जहाँ पंचांग में अभी सुधार नहीं हुआ था) शेक्सपियर का स्वर्गवास हुआ (एक प्रकार से) 23 अप्रैल को ही। मृत्यु में वे एक हो गए।

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Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2014

Pulisher

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