Shiva Sutra Aur Spandakarika

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Shiva Sutra Aur Spandakarika

Shiva Sutra Aur Spandakarika

300.00 299.00

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Author: Swami Amogha Kashyap

Availability: 5 in stock

Pages: 184

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788195046480

Language: Hindi

Publisher: Randhir Prakashan

Description

शिवसूत्र एवं स्पन्दकारिका

शिवसूत्र- आचार्य वसुगुप्त ने त्रिकदर्शन रूपी समुद्र के मंथन से जिस शिवसूत्र अमृत का संग्रह किया, उसी अमृत का रस प्रत्यभिज्ञा दर्शन के जिज्ञासुओं हेतु इस पुस्तक में सरल व्याख्या के माध्यम से प्रस्तुत किया गया हैं। इसके अनेक सूत्रों के तात्पर्यों में जटिलता है। यह सूत्र जितने सूक्ष्म हैं, इनके अर्थ उतने ही गहन। इसी गहनता और जटिलता की सरलता हेतु शिवसूत्र की इस व्याख्या में यथासम्भव सभी समभाव्य अर्थ समाहित करके इसे शैव दर्शन के जिज्ञासुओं हेतु सुलभ बनाया गया है। शिवसूत्र की सरल, सहज व्याख्या के अध्ययन से निःसृत स्पन्दतत्व के साक्षात्कार से उद्बुद्ध होने वाले स्वात्म-आनन्द का चमत्कारिक आस्वाद सभी साधकगण अवश्य उठा सकें, ऐसी कामना है।

स्पन्दकारिका – कश्मीरी शैव परम्परा के आचार्य वसुगुप्त और आचार्य कल्छट की दिव्य अनुभूतियों का विश्लेषण ही स्पन्दकारिका के रूप में प्रकट हुआ है। ब्रह्माण्ड के अस्तित्व की आधुनिक विज्ञान-सम्मत व्याख्या करने वाला यह शास्त्र एक हजार से भी अधिक वर्ष पूर्व रचा गया था। वसुगुप्त ने स्पन्दकारिका के आधार पर ही शिव और शक्ति की असाधारण धारणा को प्रतिपादित किया था। शिव शांत, स्थिर, अपरिमित और चैतन्य हैं, वहीं शक्ति उनका क्रिया रूप हैं। अतः परमशिव रूपी ज्ञान और क्रियाशक्ति रूपी विज्ञान के इस अद्भुत समन्वय शास्त्र स्पन्दकारिका की सरल व्याख्या आधुनिक विज्ञानियों और अध्यात्म के पथिकों के लिए समान रूप से उपयोगी है।

 

शिवसूत्र एवं स्पन्दकारिका

काश्मीर के अद्वैतवादी शैवदर्शन (त्रिकदर्शन) की दार्शनिक धारा का मूल स्त्रोत शिवसूत्र है। शिवसूत्र शिवत्व प्राप्ति की साधनायात्रा है। चैतन्यात्मक, आत्मस्वरूप के साक्षात्कार का उत्तम मार्ग इसमें वर्णित है। शिवसूत्रों के मूल उद्भावक या प्रणेता स्वयं शिव थे किन्तु इसके उद्धारक आचार्य वसुगुप्त हैं। परमगुरु वसुगुप्त और उनके शिष्यों की परम्परा के अनुसार शिवसूत्रों की व्याख्या की जो गंगा प्रवाहित होती चली आ रही है, उसी को आत्मसात करते हुये इन सूत्रों की प्रमाणिक व यथातथ्य व्याख्या प्रस्तुत करने का ये प्रयास है।

शिवोपनिषद्‌ स्वरूप शिवसूत्रों को हृदयंगम करके काश्मीरी शैवाचार्य वसुगुप्त ने इन सूत्रों की व्याख्या के रूप में भट्टकल्लट आदि शिष्यों को जो उपदेश दिया, उन्हीं उपदेशों का संग्रहीत स्वरूप स्पन्दकारिका है। परमशिव निर्गुण, निराकार होते हुये भी स्पन्दशक्ति से परिपूर्ण है। स्पन्द ही परमशिव का हृदय, सार और शक्ति है। ‘स्पन्द’ परमतत्व का क्रियापक्ष है। इसी से परमशिव स्वतन्त्र हैं और इसी शक्तिपक्ष की प्रधानता से स्पन्दशास्त्र उत्पन्न हुआ है। ‘स्पन्दकारिका’ स्पन्दशास्त्र का विख्यात ग्रन्थ है।

 

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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