Mere Ashayog Ke Sathi

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Mere Ashayog Ke Sathi

Mere Ashayog Ke Sathi

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Author: Rahul Sankrityayan

Availability: 5 in stock

Pages: 108

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788122501315

Language: Hindi

Publisher: Kitab Mahal Publishers

Description

मेरे असहयोग के साथी

भूमिका

महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन के नारे की ध्वनि ने इस शान्ति के पुजारी के हृदय में तूफान उठा दिया और यह देशभक्त सेनानी असहयोगी आन्दोलन में कूद पड़ा। परन्तु खेद ! झंझावाद के झपेड़ों ने इस सेनानी के साथियों को विस्मृति के गर्भ में फेंक दिया। आज उसी शांति-दूत द्वारा उन सहयोगियों की पुण्य-स्मृति हमारे समक्ष है।

महापंडित राहुल जी ने अपने समय के सामान्य नेता से लेकर सामान्य जन-सेवक तक की सेवाओं का अत्यन्त मार्मिक रूप में चित्रण किया है। भूले हुए शहीदों की पावन स्मृति जागृत करने का यह प्रथम प्रयास है। इसके कुछ संस्मरण उतने मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं कि पाठकों की आँखें गीली हो जाती हैं।

प्रकाशकीय

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहास-प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है। राहुल जी की जन्म तिथि 9 अप्रैल 1893 ई० मृत्यु तिथि 14 अप्रैल 1963 ई० है। उनके बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वयं बौद्ध हो गये। राहुल नाम तो बाद में पड़ा-बौद्ध हो जाने के बाद। सांकृत्य गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा।

राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्न-भिन्न भाषा साहित्य एवं प्राचीन संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य इनमें था। प्राचीन और नवीन साहित्य-दृष्टि की जितनी पकड़ और गहरी पैठ राहुल जी की थी ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड़ जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही। वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नहीं रुके उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरंतर चलती रही। विभित्र विषयों पर उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है। अब तक उनके 130 से भी अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों, निबन्धों एवं भाषणों की गणना एक मुश्किल काम है। उनकी पैठ न केवल प्राचीन-नवीन भारतीय साहित्य में थी अपितु तिब्बती। सिंहली, अंग्रेजी, चीनी रूसी जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुये तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।

राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न विचारक हैं। महाकवि निराला ने राहुल जी के विषय में लिखा है ”हिन्दी के हित का अभिमान वह, दान वह”। उनकी रचनाओं में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है।

”राहुल जी केवल विचारक और लेखक ही नहीं थे। वह एक सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे। वे किसानों और दलितों के मसीहा थे।” अतः असहयोग आन्दोलन से लेकर किसान आंदोलन तक में काम किया, जहाँ लाठियाँ भी खानी पड़ी। वस्तुत राहुल जी ‘हिन्दी नवजागरण काल’ के आगे बड़े हुये दौर के नेता थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुए हिन्दी नवजागरण की जिस मशाल को लेकर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य पं० रामचन्द्र शुक्ल तथा प्रेमचन्द आगे बढे, राहुल जी उसकी अगली कड़ी थे। राहुल जी के साहित्य में सर्वाधिक प्रभावित करने वाला तत्व है, उनके पास एक संवेदनशील कवि-हृदय का होना। उनकी भाषा देशी हिन्दी है, जिसमें वह पाठकों से सहजता व आतमीयता से बातें करते हैं।

‘राहुल जी’ ने संस्मरण-लेखन में भी अपनी एक अलग निजी शैली की छाप छोडी जिसमें सरल सपाट वर्णन दृष्टिगत है। उसमें साहित्य के विद्यार्थी के लिये भाषा शैली की मोहकता कहीं अधिक अनुभवजन्य ज्ञान। उस व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन और उसके सम्पर्क में आये व्यक्तियों की विशेषताओं से मिलता है। राहुल जी की इस कोटि की रचनाओं में चार प्रमुख हैं –

  1. जिनका मैं कृतज्ञ हूँ
  2. मेरे असहयोग के साथी
  3. बचपन की स्मृतियों और
  4. अतीत से वर्तमान

उनकी प्रस्तुत पुस्तक ‘मेरे असहयोग के साथी’, जो वर्ष १९५६ ई० में लिखी गई, मैं महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के साथियों-मथुरा बाबू, पंडित नगनारायण तिवारी, बाबू मधुसूदन सिंह, बाबू राम नरेश सिंह, बाबू लक्ष्मी नारायण सिंह। बाबू राम उदार राय, बाबू प्रभुनाथ सिंह, पं० गिरीश तिवारी, गोस्वामी फुलनदेव गिरि, पं० ऋषिदेव ओझा, बाबू वासुदेव सिंह। पंडित भरत मिश्र, बाबू महेन्द्र प्रसाद, बाबू रुद्रनारायण, बाबू रामानन्द सिंह, बाबू सभापति सिंह, बाबा झाडू दास। बाबू हरिनन्दन सहाय। महज़ तुलसी गोसाई व बाबू नारायण प्रसाद सिंह, दारोगा नन्दी, हक साहब तथा बाबू चन्द्रिका सिंह आदि महानुभावों के संस्मरण हैं।”

उक्त सभी संस्मरणों को पढने के बाद पाठकगण इन तथ्यों पर पहुँचेंगे कि महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन के समय बिहार प्रान्त के छपरा, एकमा। सिसवन, रघुनाथपुर आदि थानों के निवासियों में स्वतंत्रता-संग्राम की लहर पूर्ण रूपेण व्याप्त हो गई थी तथा राष्ट्रीय गीतों द्वारा स्त्रियों में भी राष्ट्रीय भावना और खद्दर के साथ प्रेम करने के लिये भी नगनारायण तिवारी ऐसे रचनाकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

इस संस्मरणों में राहुल जी ने बड़ी खूबी के साथ छपरा के तत्कालीन ग्रामीण जीवन का जीवन चित्रण किया है। वह लिखते हैं, ‘छपरा का अर्थ संकट कितना कठिन है, खासकर एक साधारण किसान का। सारन जिले में एकमा थाना में वर्षा के अभाव में उतना अनाज नहीं पैदा होता कि वह बचाकर अगले साल के लिये उसे रख सके। इसी प्रकार वहाँ की आर्थिक स्थिति के विषय में राहुल जी लिखते हैं, ”आज अंग्रेज नहीं हैं और अंग्रेजों के खुशामदी बाबू-राजा तथा उनकी शान पर लोगों का सिर फोड़ने वाले काले साहब भी अब उस रूप में नहीं दिखाई देते, पर आर्थिक चिन्तायें पहले से बढी है…

बाबू राम नरेश सिंह के चरित्र को राहुल जी ने इन शब्दों में किया है…”वह चुपचाप काम करने वाले थे तथा दूसरे के कामों में भी वह शामिल होते आये। संयुक्त परिवार के आधार थे। अल्प शिक्षित रहते भी उन्होंने अपने जीवन का बहुत सदुपयोग किया तथा भय या प्रलोभन से डिगे नहीं।”

इसी प्रकार सादगी व आत्मसम्मान के पक्ष को प्रतिपादित करते हुये उन्होंने बाबू हरिहर सिंह के चरित्र को उजागर करते हुये लिखा है… ‘उनमें चित्रण सादगी थी। भोजपुरियो में आत्मसम्मान की मात्रा जरूरत से अधिक है। वह न वैयक्तिक और न जातिगत अपमान को सह सकते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक राहुल जी की एक संस्मरण रचना के साथ-साथ अपने देशवासियों को उसकी स्वतंत्रता तथा अपने आत्म सम्मान की रक्षा करने का भी संदेश देती है जो व्यर्थ नहीं जाती। वह लिखते हैं, ‘…हरिहर बाबू की तरह कितनी ही गुमनाम समिधायें हमारे देश के स्वतंत्रता यज्ञ में चुपचाप पड़ी हैं वह व्यर्थ नहीं गई। उन्होंने उस आग को प्रज्वलित रक्खा जो अन्त में अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने में सफल हुई।’’

हमें पूर्ण विश्वास है कि राहुल जी की प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को नि:संदेह प्रासादान्त सिद्ध होगी।

 

विषय सूची

  • मथुरा बाबू
  • पं० नगनारायण तिवारी
  • बाबू मधुसूदन सिंह
  • बाबू रामनरेश सिंह
  • बाबू लक्ष्मीनारायण सिंह
  • बाबू हरिहर सिंह
  • बाबू रामउदार राय
  • बाबू रामबहादुर लाल
  • बाबू प्रभुनाथ सिंह
  • पं० गिरीश तिवारी
  • गोस्वामी फुलनदेव गिरि
  • पं० ऋषिदेव ओझा
  • बाबू वासुदेव सिंह
  • पं० भरत मिश्र
  • बाबू महेन्द्र प्रसाद
  • बाबू रुद्रनारायण
  • बाबू रामानन्द सिंह
  • बाबू सभापति सिंह
  • बाबू झाडू दास
  • बाबू हरिनंदन सहाय
  • महन्त तुलसी गोसाई
  • बाबू नारायण प्रसाद सिंह
  • दारोगा नन्दी
  • हक साहब
  • बाबू चन्द्रिका सिंह
  • बाबू महेन्द्रनाथ सिंह
  • बाबू भूलन साही
  • बाबू माधव सिंह
  • बाबू रामदेनी सिंह
  • बाबू जलेश्वर राय
  • पं० गोरखनाथ त्रिवेदी
  • बाबू फिरंगी सिंह
  • सन्त कृपालदास
  • बाबू पीताम्बर सिंह
  • बाबू हरिनारायण लाल
  • बाबू जलेश्वर प्रसाद
  • बाबा नरसिंह दास
  • बाबू सरयू ओझा

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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