Burniar Ki Bharat Yatra

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Burniar Ki Bharat Yatra

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Author: Ganga Prasad Gupt

Availability: 3 in stock

Pages: 196

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9788123734972

Language: Hindi

Publisher: National Book Trust

Description

बर्नियर की भारत यात्रा

सदियों से भारत का आकर्षण विदेशियों को लुभाता रहा है और यही कारण है कि विश्व के हर कोने से यात्री यहां भ्रमण को आते हैं। यहां आने वाले बहुत-से विदेशी यात्रियों ने एक इतिहासकार की दृष्टि से भारत को देखा और यहाँ के तत्कालीन शासक, शासन व्यवस्था, सांस्कृतिक, धार्मिक रीति-रिवाज, आर्थिक व सामाजिक स्थिति आदि का वर्णन किया। सत्रहवीं सदी में फ्रांस से भारत आए फैंव्किस बर्नियर ऐसे ही विदेशी यात्री थे। उस समय भारत पर मुगलों का शासन था। मुगल बादशाह, शाहजहां उस समय अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे। बर्नियर ने मुगल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएं बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।

प्रस्तुत पुस्तक में बर्नियर द्वारा लिखित यात्रा का वृत्तांत उस काल के भारत की छवि हमारे समक्ष उजागर करता है। यूं तो हमारे इतिहासकारों ने उस काल के विषय में बहुत कुछ लिखा है, लेकिन एक विदेशी की नजर से भारत को देखने, जानने का रोमांच कुछ अलग ही है।

 

बर्नियर की भारत यात्रा

दुनिया की सैर करने की इच्छा से मैं पलेप्टाइन और ईजिप्ट गया, फिर वहाँ से भी आगे बढ़ने की मेरे मन में अभिलाषा हुई। लाल समुद्र को एक सिरे से दूसरे सिरे तक देखने का विचार होते ही मैं ईजिप्ट की राजधानी कैरो से, जहां एक वर्ष से कुछ अधिक काल तक मैं ठहरा था, चल पड़ा-और कारवां की चाल से बत्तीस घंटे में स्वेज नगर में आ पहुंचा। यहां से मैं एक जहाज पर सवार हुआ। जहाज किनारे किनारे चल रहा था। 17 दिन के बाद मैं जद्दे पहुंचा। जद्दे से मक्का पहुंचने में दो किनारे चल रहा था। 17 दिन के बाद मैं जद्दे पहुंचा। जद्दे से मक्का पहुंचने में दो पहर लगते हैं। यहां पहुंचना मेरी आशा के विरुद्ध था और उस प्रतिज्ञा के भी विरुद्ध जो मुझे लाल समुद्र के तुर्की अधिकारी की ओर से दी गई थी। अतएव लाचार होकर मुझे मुसलमानों की उस पवित्र भूमि पर जहाज से उतरना पड़ा जहां कोई ईसाई जब तक कि वह गुलाम न हो पांव रखने का साहस नहीं कर सकता।

यहां कोई पांच सप्ताह ठहर कर मैं एक छोटे जहाज पर सवार हुआ जिसने अरेबिया फेलिक्स के किनारे किनारे चलकर पंद्रह दिन में मुझे बाबुल मंदब की समुद्री धूनी के पास वाले मुखा नामक बंदर पर पहुंचा दिया। यहां पहुंच कर मेरा यह इरादा हुआ कि मसोआ और आर्कि के टापुओं को देखता हुआ हब्शियों की राजधानी अथवा इथोयोपिया राज्य की मुख्य नगर गोंडर को जाऊं, परंतु इनमें मुझे यह समाचार मिला कि राज माताके कपट प्रबंध के कारण जिस दिन से गोवा से जासूस पादरी को अपने साथ लाने वाले पाचुगीज लोग मारे गए अथवा देश से बाहर कर दिए गए उस दिन से रोमन केथलिक वालों का वहां उतरना सुरक्षा की बात नहीं है। और वास्तव में कुछ समय पूर्व इस राज्य में प्रवेश करने का प्रयत्न करने के अपराध में एक अभागे कृस्तान साधु का सवाकीने में वध भी किया गया था।

मैंने सोचा कि यदि मैं आर्मिनियन अथवा ग्रीक जैसा भेष बनाकर चलूंगा तो भय कम रहेगा औरसंभव है किबादशाह मेरी योग्यता और कानों को देखकरमुझे कुछ जमीन दे देगा जिसे यदि मैं उन्हें खरीद सकूंगा तो गुलाम जोते बोएंगे। परंतु साथ ही यह खटका हुआ कि इस वेष में मुझे वहां विवाह भी अवश्य ही कर लेना पड़ेगा, जैसे कि एक योरपीय संन्यासी को जिसने अपने को ग्रीक के बादशाह का वैद्य प्रसिद्ध किया था ऐसा करने के लिए विवश होने पड़ा था। और फिर इस अवस्था में मुझे इस देश के छोड़ने की आशा एक बार ही परित्याग करनी पड़ेगी।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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