- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
कहानी : सूफी की जबानी
प्रस्तुत उपन्यास कहानी : सूफी की जबानी केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा प्रतिष्ठित इडश्शेरी अवार्ड से सम्मानित मलयालम उपन्यास सूफी परंज कथा का हिन्दी अनुवाद है, जिसमें वर्तमान को समझाने के लिए अतीत का सहारा लिया गया है। एक और सूफी की जबान से अतीत की घटनाएँ अनावृत्त होती जा रही हैं और दूसरी तरफ पाठकों के मन में मजहबी उन्माद की निरर्थकता घर कर जाती है। यह दो विरोधी संस्कृतियों के बीच शान्ति एवं सद्भाव का संदेश देता है।
मेलेप्पुल्लारा नामक हिन्दू परिवार और मुसलियारकम नामक मुसलमान परिवार के इर्द-गिर्द उपन्यास की घटनाएँ घटित होती हैं। दोनों परिवारों के अतीत की खोज से पता चलता है कि धर्म के नाम पर गर्व करने के लिए दोनों ही लायक नहीं हैं। इन दो परिवारों के लड़के-लड़की के मिलन का परिणाम सुखांत हो या न हो, अपनी कहानी के माध्यम से कथावाचक सूफी यही सीख देता है कि मजहब के नाम पर समाज का बँटवारा नहीं होना चाहिए। जात-पाँत के नाम पर खून-खराबा करने वाले लोग ईश्वर के दण्ड-विधान का शिकार बन जाते हैं। इतिहास की अन्तर्धाराओं को समझने की अगर हम जरा भी कोशिश करें तो आपसी बैर-विद्वेष की निरर्थकता हमारे सामने उजागर हो सकती है और साम्प्रदायिकता की खाई को पाटा जा सकता है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.