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Description
पत्थर ऊपर पानी
रवीन्द्र वर्मा ने ‘पत्थर ऊपर पानी’ में संबंधों की आज छलछलाती तरलता को शब्दों में लाने का उपक्रम किया है जो पत्थर से भी ज्यादा सख्त और संवेदन शून्य होती जा रही है। दरअसल वह पानी सूख गया है जो रिश्ते-नातों की जड़ें सींचता था और आत्मीयता की शाखें हरी-भरी रखता था। हार्दिकता की सूखी हुई नदी की ढूंढ ही इस रचना का केन्द्रीय विमर्श है।
संबंधों के साथ ही व्यक्ति और वक्त भी व्यतीत होते गये हैं। यह गुज़र जाने का भाव गहरे मार्मिक मृत्युबोध को व्यक्त करता है। रिश्ते टूटते हैं तो मर जाते हैं। नैना और पौ. चंद्रा हों या सीतादेवी और उनके पुत्र इसी भयानक आपदा को झेलते हैं।
इस छोटे उपन्यास में मृत्यु का बड़ा अहसास कथा-प्रसंग भर नहीं है। संबंधों के अंत को गहराने वाली लेखकीय दार्शनिक युक्ति-मात्र भी उसे नहीं कह सकते। वह एक स्थायी पीड़ा और ऐसी लड़ी है जिसमें हम जीवन को खोकर उसे फिर से पाते हैं। यही खोने-पाने का महान अनुभव यहाँ मृत्यु की त्रासदी में उजागर होता है। इस मायने में यह जीवन के अनुभव को रचना में महसूस करना है।
इस उपन्यास की काव्यात्मक भाषा एवं अन्य उल्लेखनीय विशेषता है। बिम्ब रूपक में बदलकर आशयों को विस्तार और बड़े अर्थ देते हैं। वस्तुतः जीवन के विच्छिन्न सुरताल को पकड़ने की इच्छा और बची हुई गूंज को सुरक्षित रखने की सद्भावना की प्रस्तुति के लिए इस भाषिक विधान से बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता था। इस भाषा में गद्य का गाम्भीर्य और स्पष्ट वाक्य-विन्यास के साथ कविता की स्वतः स्फूर्त शक्ति समन्वित है। इस संदर्भ में यह कथा रचना कविता का आस्वाद भी उपलब्ध कराती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2023 |
Pages | |
Pulisher |
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