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दो भद्र पुरुष
प्रथम परिच्छेद
1
एक लखपति था और दूसरा मजदूर। एक ठेकेदार था, दूसरा स्कूल-मास्टर। एक नई दिल्ली में बारहखम्भा रोड पर दुमंजिली कोठी पर रहता था, दूसरा बाजार सीताराम के कूचा पातीराम की अँधेरी गली के अँधेरे मकान में। एक मोटर में बैठकर काम पर जाता था तो दूसरा बाइसिकल पर। एक उत्तम विलायती वस्त्र धारण करता था दूसरा खद्दर का पायजामा, कुरता, जाकेट, और टोपी।
फिर भी दोनों में परस्पर सम्बन्ध था। एक बहनोई था दूसरा साला। यह चमत्कार इस कारण नहीं था कि स्कूल-मास्टर की बहिन सुन्दर थी और वह लक्षाधिपति उस पर मुग्ध हो गया था, प्रत्युत दोनों में यह सम्बन्ध इस कारण बना था कि दोनों एक ही बिरादरी के व्यक्ति थे।
सन् 1905 में लाहौर के एक मोहल्ले में लाला गिरधारीलाल खन्ना का लड़का गजराज जब पन्द्रह वर्ष का हुआ तो उसके पड़ोस में रहने वाले सोमनाथ कपूर की स्त्री सरस्वती गिरधारीलाल के घर आई और उसकी स्त्री से कहने लगी, ‘‘बहिन ! लक्ष्मी के सिर पर हाथ रख दो तो हमारा बोझा हल्का हो जाय।’’
गजराज की माँ परमेश्वरी ने लक्ष्मी को देखा हुआ था। लड़की गोरी और सुन्दर थी। साथ ही कभी मिल जाती तो हाथ जोड़ ‘मौसी राम-राम’ भी कह देती थी। बात उसके मन लगी। केवल एक शंका थी कि गजराज के पिता कहीं कुछ दहेज न माँग लें। वह जानती थी कि किन्हीं परिवारों के लड़के वाले दहेज माँगने लगे हैं। वह स्वयं तो इस विषय में उदार विचारों वाली थी, परन्तु अपने पति के विषय में कुछ नहीं कह सकती थी।
अतएव उसने कहा, ‘‘बहिन ! लक्ष्मी तो अपनी ही लड़की है। जात-बिरादरी भी ठीक है। फिर भी गजराज के पिता से पूछ लूँ। तभी बात पक्की होगी।’’
‘‘ठीक है, पूछ लेना। बहिन, तुम कह दोगी तो लड़की राज चढ़ जायगी और हम जीवन-भर तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगे।’’
उसी रात लाला गिरधारीलाल की पत्नी ने डरते-डरते अपने पति से इस विषय में बात की—‘‘आज लक्ष्मी की माँ सरस्वती आई थी और गजराज से उसके रिश्ते के लिए कह रही थी।’’
‘‘तो तुमने स्वीकार कर लिया है ?’’
‘‘भला आपसे पूछे बिना मैं कैसे मान सकती थी !’’
‘‘क्यों, क्या तुम गजराज की माँ नहीं हो ?’’
‘‘लक्ष्मी के पिता को पचपन रुपये मासिक वेतन मिलता है।’’
‘‘और मैं सोने-चाँदी का व्यापार करता हूँ, यही कहना चाहती हो न ?’’
परमेश्वरी का मुख इससे लाल हो गया। उसने कहा, ‘‘मैं तो आपके विषय में विचार कर रही हूँ। हम औरतों को तो केवल खाने-पहनने भर को चाहिए। बात तो आदमियों की है। उन्हें हर स्थान पर आना-जाना होता है।’’
‘‘देखो भाग्यवान ! लड़की हमारे घर में आएगी तो धन-दौलत उसकी हो जाएगी और वह भी तब उतनी ही धनवान हो जाएगी, जितनी तुम हो। तब वह तुम्हारे बराबर हो जाएगी।’’
‘‘मैं तो यह कह रही थी कि लक्ष्मी का पिता आभूषणादि कुछ अधिक नहीं दे सकेगा।’’
‘‘तो क्या तुम्हारे पास उनकी कुछ कमी है ?’’
Additional information
Authors | |
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ISBN | |
Binding | Paperback |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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