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Description
ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड
लेखिका का मूल उत्स किस्से को कहने में है। किस्सा जो एक विराट परिवार और विराट परिदृश्य को घेरता है। विराट प्रेस जगत को। इस किस्से को कहने के बाबत लेखिका के पास इतनी सामग्री, इतने डिटेल्स हैं कि वह ठहरकर चरित्र-चित्रण नहीं कर सकतीं। अवचेतन के फ्लड गेट्स खुलने पर जो महाप्रवाह चल निकला उसमें पात्र जैसे भी समाएं, आख्यान तो बढ़ता जाएगा।
दरअसल, लेखिका के पास किस्सागोई का आदिम, चिर प्रमाणित सूत्र है-उत्सुकता को बनाए रखना। फिर भी उपन्यास कई स्तरों पर चलता है। लेखिका ने उसे जिंदगी की तरह खुला छोड़ दिया है। पात्र कहीं बुरे भी हैं तो जैसे माफ कर दिए गए हैं, क्योंकि जीवन शायद इसी तरह है। सेठों की हवेली से लेकर अखबार के प्रतिष्ठान तक सभी पात्र-सरोज चाची से लेकर करीमन बी तक।| सब किसी अभाव, किसी अपूर्ति, किसी अधूरेपन को भोग रहे हैं। क्योंकि जीवन ऐसा ही है, अनादि काल से।
उपन्यास का एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि शायद पहली बार आम पाठक की जानकारी में भारतीय प्रेस का आंतरिक दृश्य विस्तार से ‘सड़क’ पर आता है। आमतौर पर पाठक अखबार पढ़ते हैं, पर अखबार के छपने और न छपने के बीच नेपथ्य में क्या होता है, यह नहीं जानते। उपन्यास की नायिका माधवी अखबार के बुनियादी सरोकार को इंसान के दुःख और स्वाभिमान से जोड़ती है। इंसान और उसकी वेदना, धर्म, राजनीति और ‘बाजार’ से ऊपर है।
उपन्यास में संपन्न मारवाड़ी घरानों की स्त्रियों की वंदना भी खुलकर सामने आती है। मगर औरतों की युग युग की घुटन को लेखिका ने फैशनी क्रांतिकारिता से नहीं, बल्कि दुःख और क्षोभ से उठाया है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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