Khazane Ki Khoj

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Author: R.L. Stevenson Translated Srikant Vyas

Availability: 2 in stock

Pages: 80

Year: 2018

Binding: Paperback

ISBN: 9788174830432

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

खजाने की खोज

1

बहुत दिन पहले की बात है, मेरे पिता की एक सराय थी। अक्सर उसमें दूर-दूर के मुसाफिर आकर ठहरा करते थे। सराय का नाम था ‘एडमिरल बेनवो’। एक दिन एक मुसाफिर वहाँ आया। देखने से वह कोई जहाज़ी मालूम होता था। उसके पीछे-पीछे एक कुली था। कुली ने अपने सिर पर लोहे का एक सन्दूक उठा रखा था। वह जहाज़ी लम्बा-तड़ंगा और बहुत तगड़ा था।

उस समय मेरी उम्र बहुत कम थी, लेकिन फिर भी मैं उस जहाज़ी की बात आज तक नहीं भूला हूं। मुझे अच्छी तरह याद है, उसके दाहिने गाल पर तलवार के घाव का निशान था। पहले दिन जब वह सराय में आया, वह कोई गाना गुनगुना रहा था। उसके हाथ में एक तलवार थी।

आते ही उसने दरवाज़ा खटखटाया। मेरे पिता ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के खुलते ही वह बोला, ‘‘मुझे बड़ी प्यास लगी है। एक प्याला शराब ले आओ। मैं जहाज़ का कप्तान हूं। यहां कुछ दिन रहना चाहता हूं।’’

उसकी आवाज़ इतनी कड़ी थी कि सुनकर डर लगता था।

कुली ने अन्दर आकर एक कोने में उसका सन्दूक रख दिया। और पैसे लेकर चला गया। उसके जाने के बाद जहाज़ी ने मेरे पिता से कहा, ‘‘मेरे खाने-पीने के लिए तुम ज़्यादा झंझट न करना। जो कुछ मिल जाएगा, उसी से काम चला लूंगा।’’

वह जहाज़ी अकेले रहना पसन्द करता था। भीड़-भाड़ में उसे बड़ी तकलीफ होती थी। उसके पास पीतल की एक दूरबीन थी। दिन-भर दूरबीन लेकर वह इधर-उधर घूमा करता था। कभी किसी पहाड़ी पर चढ़ता और वहां से आस-पास का दृश्य देखता, तो कभी किसी पेड़ पर चढ़कर बैठा रहता था। शाम होते ही सराय में लौट आता था और एक कोने में बैठा रहता था। अगर कोई उसे तंग करता था, तो उसे इतना गुस्सा आता था कि उसकी नाक फड़कने लगती थी।

एक दिन कप्तान ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘लो, यह एक रुपया लो। अच्छा बताओ, तुम मेरा एक काम कर दोगे ? अगर रास्ते में तुम्हें कोई लंगड़ा जहाज़ी दिखाई दे तो तुम फौरन आकर मुझे इसकी खबर कर देना मैं तुम्हें एक लंगड़े जहाज़ी को खोजने का काम सौंप रहा हूं। इसके बदले में मैं तुम्हें एक रुपया महीना दिया करूंगा। लेकिन याद रखना, यह बात और किसी को मालूम न होने पाए।’’

रुपया पाकर मैं बहुत खुश हुआ और चुपचाप उस जहाज़ी का काम करने लगा। रोज़ सड़कों पर इधर-उधर घूमकर मैं उस लंगड़े को खोजने लगा। उस लंगड़े का मुझे इतना ध्यान रहने लगा कि हर समय मुझे उसकी सूरत नज़र आने लगी।

कप्तान सराय में किसी-से मिलता-जुलता नहीं था, और न कोई उसके पास जाता था। रात में वह काफी देर तक सोता नहीं था। शराब पीता था और जहाज़ियों का कोई गीत गाता रहता था। उसकी आवाज़ बहुत मोटी थी। पूरी सराय उससे गूंजती रहती थी। सब लोगों को उसके साथ गाना पड़ता था, वरना वह नाराज़ हो जाता था। कभी-कभी वह गाते-गाते एकदम वह चीख पड़ता था, ‘‘बन्द करो ! बन्द करो ! तुममें से किसी को भी गाना नहीं आता।’’

सब लोग चुप हो जाते थे। कभी-कभी वह कहानी सुनाने लग जाता था। उसकी कहानियां भी बड़ी अजीब होती थीं।

कभी वह दूर देश की यात्राओं की कहानियां सुनाता था, तो कभी चोर, डाकू और लुटेरों की। अगर कोई बीच में बोलता था तो उसे वह फौरन डांट देता था।

इस तरह सराय में रहते हुए उसे काफी दिन हो गए। वह वहां से जाने का नाम नहीं लेता था। ऐसा लगता था, जैसे उसे वह जगह पसन्द आ गई थी। लेकिन उसका सारा हिसाब उधार चलता था। उस पर बहुत ऋण चढ़ गया था। मेरे पिता बड़े संकट में पड़े हुए थे। वे अगर कभी उससे पैसा मांगते थे, तो वह फौरन आंखें निकालकर उन्हें डांटने लगता था। पिताजी डरकर उसके कमरे से चले जाते थे।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2018

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