Aaine Sapne Aur Vasantsena
Aaine Sapne Aur Vasantsena
₹120.00 ₹100.00
₹120.00 ₹100.00
Author: Ravi Bule
Pages: 132
Year: 2008
Binding: Hardbound
ISBN: 9788126314218
Language: Hindi
Publisher: Bhartiya Jnanpith
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Description
आईने सपने और वसन्तसेना
रवि बुले का पहला कहानी संग्रह ‘आईने , सपने और वसन्तसेना’ कई तरह से हिन्दी कहानी के आत्ममुग्ध चरित्र को चुनौती देता है। इस संग्रह में शामिल आठ कहानियाँ समय में घुलती मानवीय चिन्ताओं को टटोलती हैं। इनका नितान्त नयापन सहजता से रेखांकित किया जा सकता है। यदि मात्र एक कहानी के माध्यम से रवि बुले कि रचना-शक्ति का आकलन करना चाहें तो सुधीश पचौरी के शब्दों में ‘रवि बुले की ‘लापता नत्थू उर्फ़ दुनिया न माने’ कहानी को जो पढ़ जायेंगे वे जान जायेंगे कि हिन्दी में जादुई मिक्सिंग के लिए बोर्खेज की किसी को भौंडी नक़ल करने की ज़रूरत हो तो हो, लेकिन रवि बुले को नहीं है। आप जरा नाथूराम गोडसे, नत्थू और नाथूराम गाँधी, गाँधी, हेडगेवार, हिन्दू और फासिज़्म की जबर्दस्त मिक्सिंग को देखें, जो अन्ततः पाठ की वक्रता में भी ऐसी आज़ादी पैदा करती है कि ऐन फासिस्ट में भी कुछ विदूषी-विनोद पैदा करके मूल का उच्छेद करके, वृत्तान्त को ही एक रणनीति बनाकर बता देती है और फिर भी कहानी बोझिल नहीं होती। एक प्रकार की सतत विनोद वृत्ति बनी रहे और उससे ही पाठ की कई परतें खुलती रहे। ‘जादुई’ का कमाल तभी है जब ‘पाठ’ की प्रक्रिया में मजा आता रहे और वह किसी नकली दलित या क्रान्तिकारी कथा के हाहाकारी विडम्बनामूलक पाठ को निरस्त करती रहे।
आह! कितने दिन बाद कम से कम एक कहानी आयी है जो नितान्त नये ने लिखी है, जिससे हिन्दी की कहानी वही नहीं रहती जो अब तक नज़र आती है। कहानी की इम्मीजिएसी देखिए और उसके भीतर बन बनकर बिगाड़ी जाती दुनिया देखिए, आप पायेंगे कि इस तरह कहानी लिखना सरल दिखता है। लेकिन कौतुकी वृत्ति इसे कठिन और फिर सरल बना डालती है। आप जिस खेल को खेल रहे हैं, वह जानलेवा भी हो सकता है। कई नकलची इसी चक्कर में खेत रहे हैं, लेकिन रवि बुले की विनोद-वृत्ति उन्हें बचा ले जाती है और कहानी को भी।’
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2008 |
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Pulisher |
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