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सम्पत्ति शास्त्र
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के युगप्रवर्तक चिंतकों में अग्रणी रहे है। उनके ही प्रयासों से हिंदी में नवीन विचारधारा, नवजागरण तथा स्वाधीन चिंतन का आरंभ हुआ।
आचार्य द्विवेदी ने हिंदी गद्य तथा पद्य की एक पक्की अवस्था को अपनाया और खड़ी बोली को नए जीवन संग्राम की भाषा बनाया।
स्वयं द्विवेदी जी का कहना हैं कि सम्पत्तिशास्त्र इतने महत्व का है कि इस पर पुस्तकें लिखना सबका काम नहीं। इस बेजोड़ और महत्वपूर्ण पुस्तक का संकलन तथा भूमिका हिंदी के सुपरिचित विद्वान प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल (4 मार्च, 1943) ने लिखी है।
डॉ. पालीवाल के महत्वपूर्ण कार्यों में नवजागरण और महादेवी वर्मा का रचना कर्म स्त्री विमर्श के स्वर, अज्ञेय : कवि-कर्म का संकट, हिंदी आलोचना का उत्तर आधुनिक विमर्श, निर्मल वर्मा : उत्तर औपनिवेशिक विमर्श, मैथिलीशरण गुप्त रचनावली, अज्ञेय रचनावली उल्लेखनीय हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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