Hamari Vasiyat Aur Virasat

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Hamari Vasiyat Aur Virasat

Hamari Vasiyat Aur Virasat

100.00 99.00

In stock

100.00 99.00

Author: Sriram Sharma Acharya

Availability: 5 in stock

Pages: 224

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Yug Nirman Yojana Vistar Trust

Description

हमारी वसीयत और विरासत

इस जीवन यात्रा से गम्भीरता पूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता

जिन्हें भले या बुरे क्षेत्रों में विशिष्ट जुड़े हुए घटनाक्रमों को भी जानने की इच्छा होती है कौतुहल के अतिरिक्त इसमें एक भाव ऐसा भी होता है, जिसके सहारे कोई अपने काम आने वाली बात मिल सके जो हो कथा-साहित्य से जीवनचर्याओं का सघन संबंध है। वे रोचक भी लगती हैं और अनुभव प्रदान करने की दृष्टि से उपयोगी भी होती हैं।

हमारे संबंध में प्रायः आए दिन लोग ऐसी पूछताछ करते रहते हैं, पर उसे आमतौर से टालते ही रहा गया है। जो प्रत्यक्ष क्रियाकलाप हैं, वे सबके सामने हैं। लोग तो जादू, चमत्कार जनना चाहते है हमारे सिद्ध पुरुष होने, अनेकानेक व्यक्तियों को सहज ही हमारे समीप्य अनुदानों से लाभान्वित होने से उन रहस्यों को जानने की उनकी उत्सुकता है। वस्तुतः जीवित रहते तो वे सभी किंवदंतियाँ ही बनी रहेंगी, क्योंकि हमने प्रतिबंध लगा रखा है कि ऐसी बातें रहस्य के पर्दे में ही रहें। यदि उस दृष्टि से कोई हमारी जीननचर्या पढ़ना चाहता है, तो उसे पहले हमारी जीवनचर्या के तत्त्वदर्शन को समझना चाहिए। कुछ अलौकिक विलक्षण खोजने वालों को भी हमारे जीवन क्रम को पढ़ने से संभवतः नई दिशा मिलेगी।

प्रस्तुत जीवन वृत्तांत में कौतूहल व अतिवाद न होते  हुए भी वैसा सारगर्भित बहुत कुछ है, जिससे अध्यात्म विज्ञान के वास्तविक स्वरूप और उसके सुनिश्चित प्रतिफल को समझने में सहायता मिलती है। उसका सही रूप विदित न होने के कारण लोग-बाग इतनी भ्रांतियों में फँसते हैं कि भटकाव जन्य निराशा से वे श्रद्धा ही खो बैठते हैं और इसे पाखंड मानने लगते हैं। इन दिनों ऐसे प्रच्छन्न नास्तिकों की संख्या अत्यधिक है। जिनने कभी उत्साह पूर्वक पूजा-पत्री की थी, अब ज्यों-त्यों करके चिन्ह पूजा करते हैं, तो भी लकीर पीटने की तरह अभ्यास के वशीभूत हो करते हैं। आनंद और उत्साह सब कुछ गुम हो गया। ऐसा असफलता के हाथ लगने के कारण हुआ। उपासना की परिणतियाँ, फलश्रुतियाँ पढ़ी-सुनी गईं थीं, उसमें से कोई कसौटी पर खरी नहीं उतरी, तो विश्वास टिकता भी कैसे ?

हमारी जीवन गाथा सब जिज्ञासुओं के लिए एक प्रकाश स्तंभ का काम कर सकती है। वह एक बुद्धिजीवी और यथार्थवादी द्वारा अपनाई गई कार्यपद्धिति है। छद्म जैसा कुछ उसमें है नहीं, असफलता का लाँछन भी उन पर नहीं लगता। ऐसी दशा में जो गंभीरता से समझाने का प्रयत्न करेगा कि सही लक्ष्य तक पहुँचने का सही मार्ग हो सकता था, शार्टकट के फेर में भ्रम जंजाल न अपनाए गए होते, तो निराशा, खीज और थकान हाथ न लगती। तब या तो मँहगा समझकर हाथ ही नहीं डाला जाता, यदि पाना ही था, तो उसका मूल्य चुकाने का साहस पहले से ही सँजोया गया होता। ऐसा अवसर उन्हें मिला नहीं, इसी को दुर्भाग्य कह सकते हैं। यदि हमारा जीवन पढ़ा गया होता, उसके साथ-साथ आदि से अंत तक गुँथे हुए अध्यात्म तत्व-दर्शन और क्रिया-विधान को समझने का अवसर मिला होता, तो निश्चय ही प्रच्छन्न भ्रमग्रस्त लोगों की संख्या इतनी न रही होती, जितनी अब है।

एक और वर्ग है-विवेक दृष्टि वाले यथार्थवादियों का वे ऋषि परंपरा पर विश्वास करते हैं और सच्चे मन से विश्वास करते हैं और सच्चे मन से विश्वास करते हैं कि वे आत्मबल के धनी थे। उन विभूतियों से उनने अपना, दूसरों का और समस्त विश्व का भला किया था। भौतिक विज्ञान की तुलना में जो अध्यात्म विज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं, उनकी एक जिज्ञासा यह भी रहती है कि वास्तविक स्वरूप और विधान क्या है ? कहने को तो हर कुंजड़ी अपने बेरों को मीठा बताती है, पर कथनी पर विश्वास न करने वालों द्वारा उपलब्धियों का जब लेखा-जोखा लिखा जाता है, तब प्रतीत होता है कौन कितने पानी में है ?

सही क्रिया सही लोगों द्वारा, सही प्रयोजनों के लिए अपनाए जाने पर उसका सत्परिणाम भी चाहिए। इस आधार पर जिन्हें ऋषि परंपरा के अध्यात्म का स्वरूप समझना हो, उन्हें निजी अनुसंधान करने की आवश्यकता नहीं हैं। वे हमारी जीवनचर्या को आदि से अंत तक पढ़ और परख सकते हैं। विगत साठ वर्षों में प्रत्येक वर्ष इसी प्रयोजन के लिए व्यतीत हुआ है। उसके परिणाम भी खुली पुस्तक की तरह सामने हैं। इन पर गंभीर दृष्टिपात करने पर यह अनुमान निकल सकता है कि सही परिणाम प्राप्त करने वालों ने सही मार्ग भी अवश्य अपनाया होगा। ऐसा अद्भुत मार्ग दूसरों के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है। आत्म-विद्या और अध्यात्म विज्ञान की गरिमा से जो प्रभावित है, उसका पुनर्जीवन देखना चाहते हैं, प्रतिपादनों को परिणतियों की कसौटी पर कसना चाहते हैं, उन्हें निश्चय ही हमारी जीवनचर्या के पृष्ठों का पर्यवेक्षण, संतोषप्रद और समाधान कारक लगता है।

प्रत्यक्ष घटनाओं की दृष्टि से कुछ प्रकाशित किया जा रहे प्रसंगों को छोड़कर हमारे जीवन क्रम में बहुत विचित्रताएँ एवं विविधताएं नहीं हैं। कौतुक-कौतुहल व्यक्त करने वाली उछल-कूद एवं जादू चमत्कारों की भी उसमें गुँजायश नहीं है। एक सुव्यवस्थित और सुनियोजित ढर्रे पर निष्ठापूर्वक समय कटता रहा है। इसलिए विचित्रताएँ ढूँढ़ने वालों को उसमें निराशा भी लग सकती है, पर जो घटनाओं के पीछे काम करने वाले तथ्यों और रहस्यों में रुचि लेंगे। उन्हें इतने से भी अध्यात्म सनातन के परंपरागत प्रवाह का परिचय मिल जाएगा और वे समझ सकेंगे कि सफलता, असफलता का कारण क्या है ?

क्रियाकांड को कुछ मान बैठना और व्यक्तित्व के परिष्कार की पात्रता की प्राप्ति पर ध्यान न देना यही एक कारण है जिसके चलते उपासना क्षेत्र में निराशा छाई और अध्यात्म को उपहास्यपद बनने, बदनाम होने का लांछन लगा। हमारे क्रिया-कृत्य सामान्य हैं पर उसके पीछे उस पृष्ठभूमि का समावेश है, जो ब्रह्म-तेजस को उभारती और कुछ महत्त्वपूर्ण कर सकने की समर्थता तक ले जाती है।

जीवनचर्या के घटना परक विस्तार से कौतूहल बढ़ने के अतिरिक्त कुछ लाभ हैं नहीं। काम की बात है इन क्रियाओं के साथ जुड़ी हुई अंतर्दृष्टि और उस आंतरिक तत्परता का समावेश जो छोटे से बीज खाद-पानी की आवश्यकता पूरी करते हुए विशाल वृक्ष बनाने में समर्थ होती रही। वस्तुतः साधक का व्यक्तित्व ही साधना क्रम में प्राण फूँकता है, अन्यथा मात्र क्रियाकृत्य खिलवाड़ बनकर रह जाते हैं।

तुलसी का राम सूर का हरे कृष्ण, चैतन्य का संकीर्तन, मीरा का गायन, रामकृष्ण का पूजनमात्र क्रिया-कृत्यों के कारण सफल नहीं हुआ था। ऐसा औड़म-बौड़म तो दूसरे असंख्य करते रहते हैं, पर उनके पल्ले विडम्बना के अतिरिक्त और कुछ नहीं पड़ता, वाल्मीकि ने जीवन बदला तो, उल्टा नाम जपते ही मूर्धन्य हो गए। अजमिल, अंगुलिमाल, गणिका, आम्रपाली मात्र कुछ अक्षर दुहराना ही नहीं सीखे थे, उनने अपनी जीवनचर्या को भी अध्यात्म आदर्शों के अनुरूप ढाला।

आज कुछ ऐसी विडंबना चल पड़ी है कि लोग कुछ अक्षर दोहराने और क्रिया-कृत्य करने, स्तवन, उपहार प्रस्तुत करने भर से अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। चिंतन, चरित्र और व्यवहार को उस आदर्शवादिता के ढाँचे में ढालने का प्रयत्न नहीं करते, जो आत्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य रूप में आवश्यक है। अपनी साधना पद्धति में इस भूल का समावेश न होने देने का आरंभ से ही ध्यान रखा गया। अस्तु, वह यथार्थवादी भी है और सर्व साधराण के लिए उपयोगी भी है इस दृष्टि कोण को ध्यान में रखकर ही जीवनचर्या को पढ़ा जाए।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2021

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