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Description
बगलगीर
संतोष दीक्षित के इस उपन्यास का वास्ता हमारे समय और समाज के एक बेहद दारुण यथार्थ से है। साम्प्रदायिकता का जहर घुलते जाने से सौहार्द किस तरह नष्ट होता है और एक समय भाईचारे की मिसाल जान पड़ते रिश्ते किस तरह शत्रुता में बदल जाते हैं, ‘बग़लगीर’ इसी की दास्तान है। यों इसमें सबसे मुख्य पात्र किकि यानी किशोर किरण की रुचि के सहारे साहित्यिक दुनिया में पसरे ओछेपन और करियर की दौड़ के बहाने नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा खुशामदी माहौल का भी भरपूर वर्णन है, साथ ही राजनीति और अफसरशाही के भ्रष्ट गठजोड़ का भी, लेकिन मुख्य प्रतिपाद्य है यह दिखलाना कि समाज रूपी शरीर की नसों में साम्प्रदायिक वैमनस्य का विष घुलने का क्या परिणाम होता है।
किकि और अशफ़ाक़ की दोस्ती ‘मिल्लत कॉलोनी’ की स्थापना में परिणत होती है, ‘‘एक ऐसी कॉलोनी जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई सब को एक जगह बसाया जाए सभी मिल-जुलकर रहें और पूरे देश में एक मिसाल कायम करें।” लेकिन समाज में सक्रिय साम्प्रदायिक गिरोह और गहराता तनाव न सिर्फ इस सपने को स्वाहा कर देते हैं बल्कि किकि और अशफ़ाक़ को एक-दूसरे का दुश्मन भी बना देते हैं। किकि की बेटी गुड़िया और अशफ़ाक़ का बेटा इमरान एक-दूसरे से प्यार करते हैं। लेकिन इस प्यार की परिणति यह होती है कि गुड़िया खुदकुशी करने को मजबूर होती है और इमरान देशद्रोह के आरोप में सलाखों के पीछे पहुँचा दिया जाता है। यह ऐसा समाज है जहाँ चोरी-छिपे देह-सम्बन्ध में सम्प्रदाय आड़े नहीं आता, पर प्यार का रिश्ता गुनाह है। संतोष दीक्षित ने जहाँ साम्प्रदायिकता के विषैले प्रभाव को दिखाया है वहीं कई जगह सेकुलर राजनीति के पाखण्ड को भी उजागर किया है।
इस उपन्यास के मूल में निहित विचलित करने वाली बेचैनी और कथा-रस, दोनों पाठकीय चित्त को बाँधे रहते हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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