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Description
पद्मनेत्रा
प्रख्यात औपन्यासिक शिल्पी डॉ. भगवतीशरण मिश्र की अद्यतन कृति है। यद्यपि यह मुख्यतः ऐतिहासिक सह आध्यात्मिक उपन्यास है और बंगाल के प्रसिद्ध सिद्ध स्थल तारा पीठ और वहाँ की अधिष्ठात्री देवा माँ तारा तथा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-लब्ध योगी-तांत्रिक वामाक्षेपा के इर्द-गिर्द बुनी गई है किन्तु इसमें 19वीं सदी के अन्त और 20वीं सदी के आरम्भ के बंगाल की सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों तथा विदेशी शासन के प्रति अकुलाहट भी अभिव्यक्ति हुई है।
साथ ही बंग-भूमि की आँचलिक गन्ध भी इसमें पर्याप्तता से प्राप्त है।
पुस्तक डॉ. मिश्र के गहन अन्वेषण और विस्तृत अध्ययन का सुफल है। वामाक्षेपा की जन्मभूमि अटला से लेकर तारापीठ का कई बार भ्रमण कर और उन पर उपलब्ध बंगला और अंग्रेजी की कृतियों के अध्ययन के पश्चात् ही यह उपन्यास प्रस्तुत किया गया है।
इसमें एक ओर तारापीठ के महाश्मशान की भयावहता और योग-तन्त्र से सम्बन्धित विस्मयकारी घटनाएँ हैं तो दूसरी ओर वामाक्षेपा तथा माँ तारा की अकारण करुणा की कहानी भी है।
उपन्यास-विधा की सभी आवश्यकताओं-अनिवार्यताओं की पूर्ति करने वाली एक श्रेष्ठ औपन्यासिक कृति।
डॉ. मिश्र के औपन्यासिक लेखन का एक महत्त्वपूर्ण मीलपत्थर।
यह उपन्यास
पद्मनेत्रा आपके हाथों में है। ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, औपन्यासिक लेखन के क्षेत्र में मेरा एक और प्रयास। सामाजिक उपन्यासों के पश्चात् ऐतिहासिक और पौराणिक उपन्यासों के लेखन के दौर से गुजरते हुए मैंने एक नया प्रयोग मात्र ऐतिहासिक-आध्यात्मिक उपन्यासों को लेकर आरम्भ किया। इसकी प्रथम कड़ी थी ‘अरण्या’ (आत्माराम एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली-6) जो ऐतिहासिक इस रूप में थी कि उसमें छत्तीसगढ़ के बस्तर प्रदेश के एक काल-खण्ड का इतिवृत्त सम्मिलित था और आध्यात्मिक इस रूप में कि बस्तर की अधिष्ठात्री देवी दन्तेश्वरी के इर्द-गिर्द वह बुनी गयी थी।
अध्यात्म को लेकर नाक-भौं सिकोड़ने वालों की कमी नहीं। इस बात का उल्लेख मैंने ‘अरण्या’ में भी किया था और यह भी स्पष्ट किया था कि अनास्थावादियों के अस्तित्व के बावजूद आस्था को आलिंगित करने वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
अपने उपन्यास ‘पावक+अग्निपुरुष’ (आत्माराम एण्ड सन्स) की भूमिका में मैंने इस तथ्य को विशेष गहराई से रेखांकित किया था—‘गलत है कि अध्यात्म धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। वैश्वीकरण और उन्मुक्त बाजार के प्रभाव ने नई पीढ़ी के कुछ लोगों को दिग्भ्रमित अवश्य किया है किन्तु देखकर आश्चर्य होता है कि मन्दिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों में नवयुवकों-नवयुवतियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। उन्हें भी अध्यात्म में आस्था की एक नई किरण दिखाई पड़ने लगी है।’’
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
Reviews
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