Bhartiya Pragya : Parampara Ka Punya Prawah
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भारतीय प्रज्ञा : परंपरा का पण्य प्रवाह
हजारों वर्षों पहले से विश्वभर के लोगों का ध्यान भारतीय प्रज्ञा की ओर आकर्षित रहा। यह मूलतः अध्यात्म प्रधान है। आध्यात्मिक भावना ही मनुष्य को देवत्व प्रदान करती है जिससे वह संपूर्ण संसार को एक ही परमतत्व से व्याप्त मानता है। यहाँ वेद, पुराण, ब्राह्मण ग्रंथ, षड्वेदांग, आरण्य ग्रंथ, उपनिषद, शास्त्र, आष महाकाव्य आदि का विचित्र संगम है, जिसका ज्ञान भारतीय मानुष को दूसरों से अलग पहचान देता है। भारतीय प्रज्ञा की बहुआयामी प्रकृति है, जिसमें ज्ञान की महत्ता, आध्यात्मिक व लौकिक विद्याओं का समावेश है। साहित्यिक अवदान के रूप में प्रसिद्ध काव्यशास्त्रीय आचार्यो, कथाकारों, नाटककारों आदि ने भारतीय मनीषा को बहुत ही सुंदर ढंग से संवारा व प्रस्तुत किया है। यहाँ परंपरा, भाव, दृष्टि, शिक्षा, संस्कृति, संस्कार वैशिष्ट्य के अलावा व्रत, त्योहार या तीर्थों आदि का भी अत्यधिक महत्व है।
प्रस्तुत पुस्तक में विश्व को चमत्कृत करती भारतीय प्रज्ञा के आदिस्वरूप में वेद, पुराण, आर्ष महाकाव्य व पौराणिक ग्रंथों से जनहित के संबंधों को स्थापित किया गया है। भारतीय प्रज्ञा की प्रकृति किस तरह बहुआयामी है, उसके ज्ञान, आध्यात्मिक विद्या, लौकिक विद्या, ललित कलाओं, विज्ञान व शास्त्र और साहित्यिक गतिविधियों की उपयोगिता क्या है और साथ में भारतीय प्रज्ञा का स्वरूप किस तरह सनातनता, सत्य, आत्मबोध, मैत्रीभाव, सेवाभिनंदन की भावना से ओत-प्रोत है, इसका विवरण पुस्तक में है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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