Chhand Teri Hansi Ka

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Chhand Teri Hansi Ka

Chhand Teri Hansi Ka

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Author: Vashishth Anoop

Availability: 5 in stock

Pages: 164

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9789357751872

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

छन्द तेरी हँसी का

‘मेरी कविता बग़ावत-विगुल है, निर्बलों की दुहाई नहीं है।’ और ‘ये ग़ज़ल ग़ज़ालचश्मों से गुफ़्तगू नहीं है, यह है मेरे अहद के ज़ख़्मों की तर्जुमानी।’ या ‘कहते हैं ग़ज़ल जिसको शबनम भी है, शोला भी, आक्रोश है धनिया का, होरी का पसीना है। जैसे शेरों के द्वारा अपने काव्य के सरोकारों की घोषणा करने वाले प्रो. वशिष्ठ अनूप हिन्दी ग़ज़ल की पहली क़तार से प्रतिष्ठित रचनाकार हैं। वह हिन्दी साहित्य के विरल साहित्यकार हैं जो जितने संवेदनशील और व्यापक दृष्टि वाले कवि हैं उतने ही कुशल, गम्भीर और दृष्टि सम्पन्न आलोचक भी हैं।

एक पाठक के रूप में वशिष्ठ अनूप की ग़ज़लों में विषयवस्तु की ताज़गी और साफ़गोई हमें बहुत प्रभावित करती है। मुझे लगता है कि महान ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार शहरी और राजनीतिक चेतना के कवि थे तथा जनकवि अदम गोण्डवी मूलतः ग्रामीण चेतना के प्रखर कवि थे। वशिष्ठ अनूप गाँव और शहर दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें दुष्यन्त और अदम दोनों की ख़ूबियाँ देखी जा सकती हैं। वह जितने गाँव के हैं, उतने ही शहर के भी। वह कहते भी हैं-

डालियाँ दूर शहरों में फैलें भले,

पर जड़ों के लिए गाँव-घर चाहिए।

हर श्रेष्ठ कवि और भले इन्सान की तरह प्रो. अनूप भी अपनी परम्परा और अपनी संस्कृति की अच्छाइयों और आदर्श मूल्यों को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं। अपनी ग़ज़लों में भी वे अपने आदर्श और प्रेरक कवियों की तलाश करते हैं, उनमें डूबते हैं और उनकी सकारात्मकता को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं-

तुलसी के जायसी के, रसखान के वारिस हैं,

कविता में हम कबीर के ऐलान के वारिस हैं।

हम सीकरी के आगे माथा नहीं झुकाते,

कुम्भन की फ़क़ीरी के अभिमान के वारिस हैं।

जब वह नारी रूप का चित्रण करते हैं तो एक से एक खूबसूरत बिम्बों, प्रतीकों और उपमानों की झड़ी लगा देते हैं जिनमें नये और पुराने हर प्रकार के उपमान शामिल होते हैं। उन्होंने तमाम पारम्परिक उपमानों को भी नयी ज़िन्दगी दी है। यह रूप वर्णन कभी अत्यन्त सूक्ष्म और अशरीरी-सा होकर आध्यात्मिकता का स्पर्श करने लगता है और कभी धरती पर चलती-फिरती रूप-राशि का जीवन्त वर्णन लगता है। कुछ उदाहरण देखें-

ख़्वाबों को जैसे सच में बदलते हुए देखा,

मैंने ज़मीं पे चाँद उतरते हुए देखा।

देखा कि एक फूल बोलता है किस तरह,

होंठों से हर सिंगार को झरते हुए देखा।

वशिष्ठ अनूप ने अपनी लम्बी रचना यात्रा और व्यापक व बहुआयामी सृजन के दौरान कई कालजयी ग़ज़लें कही हैं। हमारे समय की मुश्किलें, रोज़मर्रा की उलझनें, पारिवारिक और सामाजिक जीवन की खींचतान, राजनीतिक अधोपतन, सम्बन्धों का बिखराव और विश्वासहीनता, आधुनिक महापुरुषों और महात्माओं का पतन व कथनी-करनी का अन्तर, इन सबके बीच पिसते व घुटते हुए आदमी का जीवन-संघर्ष, प्रकृति की चिन्ताएँ और इन सबके साथ एक स्वस्थ समाज व बेहतर संसार के निर्माण की कोशिशें उनकी ग़ज़लों का केन्द्रीय कथ्य हैं। माँ, पिता, बेटी, बच्चे, नदी, पेड़, पहाड़, पक्षी, पर्व आदि पर भी उन्होंने बेमिसाल शेर लिखे हैं। उनकी तमाम ग़ज़लों के साक्ष्य के आधार पर हम कह सकते हैं कि इस दौर में वशिष्ठ अनूप की ग़ज़लें हिन्दी की प्रतिनिधि ग़ज़लें हैं। उनकी काव्य-भाषा आम जनजीवन की वहती और बोलती बतियाती हुई भाषा है। मेरी भाषा फ़ुटपाथों, खेतों-खलिहानों की’ की घोषणा करने वाले अनूप जी की सादगी और सहजता ही उनकी ग़ज़लों की शक्ति और सौन्दर्य है।

– डॉ. मीनाक्षी दुबे

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Pulisher

Publishing Year

2023

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