Hindi Kavya Mein Pragativad Aur Anya Nibandh
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हिन्दी काव्य में प्रगतिवाद और अन्य निबंध
वह प्रगतिवाद की विचारधारा की यथार्थवाद की जमीन पर परखते हैं और उस धारा को भारतेन्दु से नेपाली तक के स्वदेशी संघर्ष की रोशनी में परखते थे। मार्क्स और एंगेल्स ने बार-बार ‘यथार्थवाद की सर्वमान्य क्लासिकीय अवधारणा को निरूपित किया है।’ मल्लजी प्रगतिवाद पर विचार करें या जैनेन्द्र के नायकों को परखें, वह एंगेल्स की तरह रचना या रचनाकार में यथार्थवाद का अर्थ तलाशतें हैं चाहे वह व्यंग्य रचनाओं में हो या शुक्लजी के व्यक्तिव्यंजक निबन्धों में हो, वह ‘तफसील’ की सच्चाई को परखते हैं। शुक्लजी के ‘विकासवाद’ की चर्चा इन निबन्धों में नहीं है पर काडवेल, इलियट, मार्क्स को साहित्य की यथार्थवादी परम्परा में अपने ढंग से याद करते हैं प्रो. मल्लजी। उनका अपना ढंग ‘आम परिस्थितियों में, आम चरित्रों का सच्चाई भरा पुनः सृजन ही है।’ मल्लजी ने लोक और कर्ता कवि की संवेदनशील सामाजिकता को इसी दृष्टि से परखा या व्याख्यायित किया है।
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2007 |
Pulisher |
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