Aur Ant Mein Ishu

-21%

Aur Ant Mein Ishu

Aur Ant Mein Ishu

120.00 95.00

Out of stock

120.00 95.00

Author: Madhu Kankariya

Availability: Out of stock

Pages: 124

Year: 2008

Binding: Hardbound

ISBN: 9788189859107

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

और अंत में ईशु

मधु कांकरिया के प्रस्तुत नव्य कथा-संग्रह की कहानियाँ समसामयिक भारतीय जीवन के ऐसे व्यक्तित्व के कथामयी रेखाचित्र हैं, जो समाज के मरणासन्न और पुनरुज्जीवित होने की समांतर कथा कहते हैं। इनमें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के वैसे विरोधाभास और वैपरीत्य के दर्शन-दिग्दर्शन होते हैं, जिनमें उत्पन्न विसंगतियों के ही चलते ‘दीये तले अँधेरे’ वाला मुहावरा प्रामाणिक बना हुआ है।

आज का जागरूक पाठक सर्जनात्मक कथा-साहित्य में वर्ण और नारी आदि के विमर्शों की अनंत बाढ़ की चपेट में हैं और ऐसे ‘हवा महलों’ के संभवतः खिलाफ भी, जो कि उसे ज्ञान के संज्ञान के स्तर पर कहीं शून्य में ले जाकर छोड़ देते हैं। इसके उलट प्रस्तुत कहानियों में जीवन की कालिमा और लालिमा, रति और यति, दीप्ति और दमन एवं प्रचार और संदेश को उनके सही-सही पदासन पर बैठाकर तोला, खोला और परखा गया है। अभिव्यक्ति के स्तर पर विचारों का कोरा रुखापन तारी न रहे, इसलिए लेखिका ने प्रकृति और मनोभावों की शब्दाकृतियों को भी लुभावने ढंग और दृश्यांकन से इन कहानियों में पिरोया है। धर्मांतरण का विषय हो या कैरियर की सफलता के नाम पर पैसा कमाने की ‘मशीन’ बनाते बच्चों के जीवन की प्रयोजनहीनता ..या फिर स्त्री के नए अवतार में उसकी लक्ष्मी-भाव और उर्वशीय वांछनाओं की दोहरी पौरुषिक लोलुपताएँ-कथाकार की भाषागत जुलारीगीरी एकदम टिच्च मिलती है। इसे इन कहानियों का महायोग भी कहा जा सकता है।

सृजन को जो कथाकार अपने कार्यस्थल के रुप में कायांतरित कर देता है, वह अपने शीर्ष की ओर जा रहा सर्जक होता है। विश्वास है कि पाठक को भी यह कृति पढ़कर वैसा ही मालूम होगा। ऐसा अनुभव इसलिए अर्जित हो सका है, क्योंकि ये कहानियों जीवन के अभिनंदन पत्र नहीं , बल्कि मानवीय अपमान और सम्मान की श्री श्री 1008 भी हैं।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Pulisher

Publishing Year

2008

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Aur Ant Mein Ishu”

You've just added this product to the cart: