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Description
मुसलमान
हिन्दू मुसलमान से अपरिचित और मुसलमान हिन्दू से अपरिचित हैं। पहले जो संघर्ष हिन्दू और तुरुक में था वह हिन्दू और मुसलमान का हो गया। देश का झगड़ा दीन का झगड़ा बन गया और जो दीन हृदय को मिलाने के लिये बना था वह एक ओर पड़ गया और आपस का संघर्ष बढ़ता गया। दुष्परिणाम सामने हैं। उपाय इस पुस्तक में है। पुस्तक में जो कुछ लिखा गया है स्पष्ट और सत्य के रूप में। इसमें ‘मुसलमान’ शब्द का व्यवहार निश्चित अर्थ में किया गया है। वह ‘इसलाम’ का अभिमानी नहीं। इसलाम के भक्त को इसमें सदा मुसलिम लिखा गया है। इसलाम के नाते संसार के सभी मुसलिम एक हैं और उन्हें एक रहना भी चाहिए। परन्तु देश के प्रति भी उनका कुछ कर्तव्य है। किस देश के मुसलमान किस प्रकार इसको व्यवहार में ला रहे हैं यह भी इसमें है। एक बात जो बहुत खटकती है वह है मुसलमान का इस देश से अनभिज्ञ होना। इसके कारण भी बहुत कुछ गड़बड़ी मची है। इसमें इसको भी लिखने का प्रयत्न किया गया है। संक्षेप में 200 वर्ष की नीति इसमें प्रत्यक्ष हो गई है। साथ ही यह भी दिखाया गया है कि वंश का अभिमान भी इसलाम के प्रसार में बाधक रहा है और यही के झगड़े से भारत का ही नहीं स्वयं इसलाम का भी अहित किंवा विभाजन हुआ है। सारांश यह कि पुस्तक को सभी प्रकार उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया गया है।
– भूमिका से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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