Main Krantikari Kaise Bana

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Main Krantikari Kaise Bana

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450.00 330.00

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450.00 330.00

Author: Sudhir Vidhyarthi

Availability: 5 in stock

Pages: 215

Year: 2023

Binding: Hardbound

ISBN: 9789319141210

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

मैं क्रान्तिकारी कैसे बना

भुवनेश्वर की हलाहल–सी ज़िंदगी अभिशप्त थी उस इबारत को रचने के लिए जहां ‘जीनियस’ होकर भी कोई कलमकार अपनी स्वयं मृत्यु का रोजनामचा लिखता है। वे सचमुच ’न्यूरोटिक थे। खानाबदोश और विप्लवी भी। प्रेमचंद ने उनमें ‘कटुता’ देखी थी लेकिन जिस समय और स्थितियों के मध्य वे अपने वजूद को साबित करने की जद्दोजहद में जुटे हुए थे वहां कटुता किसी जरूरी शर्त की मानिन्द उनकी हमसफर बनी हुई थी। सुधीर विद्यार्थी अपनी यह पुस्तक ‘समय के तलघर में शब्द’ हिंदी रचनाकारों की जिस जिंदगी का ख़ाका खींचती है वहां ‘भेड़िये’ और ‘तांबे की कीड़़े’ जैसे समर्थ कृतित्व की शिनाख्त के साथ–साथ शमशेर बहादुर सिंह के गद्य, कविता, चित्र और चितेरे की तरह भाषा को गढ़ने के उनके हुनर तथा किसी तरह की दलीय प्रतिबद्धता के सवालों की भी सही पड़ताल करती प्रतीत होती है।

दूसरी ओर सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ के कविकर्म से नहीं बल्कि उनके उस पक्ष से यह पुस्तक सीधे साक्षात्कार कराती है जिसमें भारतीय क्रांतिकारी दल से उनके जुड़ाव का मुखर समावेश है जो खासकर उनकी जेल से लिखी कहानियों और कमोवेश कविता में भी झलकता–झांकता है। जहां एक ओर विष्णु प्रभाकर का गांधीवाद अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करता दिखाई देता है तो इसके बरक्स रामरख सिंह सहगल का क्रांतिकारी संपादकत्व उन हदों तक जा पहूंचता है जिसमें वे सीधे–सीधे उस क्रांति के अगुआ बने दिखाई पड़ते हैं जिन्हें दल ने उन दिनों निर्भीकता से लक्षित किया था। सुधीर विद्यार्थी की कलम से पं. राधेश्याम कथावाचक की लोकप्रिय ‘रामायण’ से पृथक उनके नाटककार वह पक्ष बेहतर ढंग से ध्वनित होता है जबकि पारसी रंगमंच से हिंदी रंगमंच की यात्रा का शुभारम्भ हुआ था।

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Hardbound

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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