Navjagaran Ki Nirmiti

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Navjagaran Ki Nirmiti

Navjagaran Ki Nirmiti

250.00 190.00

In stock

250.00 190.00

Author: Karmendu Shishir

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789392380174

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

नवजागरण की निर्मित

हमारी भाषा के यशस्वी कथाकार श्री कर्मेन्दु शिशिर ने जिस प्रकार अपनी कहानियों और उपन्यासों के जरिए भारतीय जन, विशेषकर हिन्दी जनपद की वास्तविकता और अस्मिता के सर्वथा नए रूपों को प्रतिष्ठा दी है, उसी प्रकार ज्ञान और चिंतन के क्षेत्र में हिन्दी जनपद का जो गौरवशाली आसन्न अतीत है, उसका भी उत्खनन किया है तथा नवजागरण को एक असमाप्त अध्याय मानते हुए बाद के बिखरे–विच्छिन्न पृष्ठों को एकत्र करने तथा उस अध्याय का एक नया स्वर्णिम पाठ संयोजित करने का अत्यंत महत्त्वपूर्ण यत्न किया है। यह पुस्तक उसी यत्न का सुफल है। कर्मेन्दु शिशिर ने नवजागरण की मुख्य अवधारणा को रेखांकित करते हुए उसके विकास एवं प्रसार को समझने का एक नया उपक्रम किया है। उनके अनुसार नवजागरण के मुख्य अवयव थे। हिन्दू–मुसलमान की एकता, धार्मिक रूढ़ियों, पाखंडों का पर्दाफाश, भारतीय भाषाओं के वर्चस्व का आंदोलन, किसानों, देशी उद्योगों और कारीगरों का पक्ष पोषण, साम्राज्यवादी शोषण और लूट का विरोध, स्त्रियों–दलितों का उत्थान, सामाजिक जड़ता के विरुद्ध प्रगतिशील और आधुनिक विचारों का वरण एवं विज्ञान, नई तकनीक और नए उद्योगों को आमंत्रण। साथ ही साथ भारतीय इतिहास की गरिमा की प्रतिष्ठा, व्यापक सार्वजनिक शिक्षा, भारतीय ज्ञान–विज्ञान की मीमांसा और औपनिवेशिक संस्कृति का विरोध। इससे लगता है कि सचमुच ही नवजागरण का कार्यभार आज भी शेष है। नवजागरण के संदर्भ में हिन्दी जातीयता के निर्माण और इस जातीयता के उद्गार स्वरूप विकसित हो रहे गद्य की विवेचना करते हुए कर्मेन्दु शिशिर कहते हैं कि ‘हिन्दी जातीयता का निर्माण सामंत विरोधी था और इसकी गद्य परम्परा का स्वरूप साम्राज्य विरोधी’ इस गद्य को वह ‘आत्मा की आंख’ मानते हैं। एक ऐसी आंख जो हिन्दी जाति के बाहरी और भीतरी जगत को निर्मिमेष ताकती रहती है और जिसकी पुतली पर अंकित सारी छवियाँ अमर अमिट बन जाती हैं और यह आंख सघनतम की भी आंख है। अद्भुत वैचारिक तेजस्विता और शोध–निष्ठा का समाहर करते हुए कर्मेन्दु शिशिर अपने सृजनशील चित्र की सहज प्रेरणा से हिन्दी की जातीय गद्य परम्परा का ऐसा मानचित्र प्रस्तुत करते हैं, जिसमें भारतेन्दु, प्रेमघन, राधाचरण गोस्वामी, राममोहन गोकुल शामिल हैं। इस परंपरा के निर्माण में अनेक तपस्वियों का योगदान भी कम नहीं, जिन्हें कर्मेन्दु श्रद्धापूर्वक याद करते रहे हैं। आज भी इस परम्परा को जाग्रत और देदीप्यमान रखने में कई लेखकों और विद्वानों का महत्त्वपूर्ण योग है। इस पुस्तक को पढ़ना अपनी महान गौरवशाली जातीय परंपरा का, अपने वंश वृक्ष की जड़ों का पावन स्पर्श करने जैसा अनुभव है। यह हिन्दी नवजागरण और गद्य परम्परा का ‘सैरबीन’ है और खुर्दबीन भी। निश्चय ही नवजागरण एक असमाप्त अध्याय है। एक ऐसा पाठ जिसकी रचना एक बार फिर आज आवश्यक और जीवनदायी है। अपनी अनुपम कथा–दृष्टि से कर्मेन्दु शिशिर ने हिन्दी जनपद के पिछले डेढ़ सौ वर्षों के आंदोलनों, स्वप्नों और बौद्धिक श्रम–संवेदों को इन पृष्ठों में अंकित कर दिया है। नवजागरण के वैचारिक घूर्णों और घात प्रतिघात की गहन पड़ताल के लिए कर्मेन्दु शिशिर के पास तद्नुकूल भाषा भी है, तीक्ष्ण और मुहावरेदार। यह पुस्तक नवजागरण में खुलती आंख पर पड़ने वाली प्रथम रश्मि को पहचानने का और बाद को खुलती धूप के ताप को मापने का महत्त्वपूर्ण उपक्रम है।

— अरुण कमल

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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