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Description
बन्द रास्तों के बीच
अब तुम्हारी पलकों को ही लें, जो निरन्तर ऊपर-नीचे होती रहती हैं और इसे हम पलक झपकना कहते हैं। ये पलकें झपकना ही आँखों को क्षणिक आराम देता है। एक काला शटर है जिसके बन्द होते ही सब-कुछ अँधेरे में डूब जाता है और आँखों को राहत-सी मिलती है। लेकिन तुम यह कभी नहीं समझ सकते कि ऐसा करना कितना सुकूनदायी होता है। कितनी स्फूर्ति पैदा होती है, ऐसा करने से ! ज़रा सोचो, एक घण्टे में कुल चार हज़ार बार आराम और राहत… और यहाँ आलम यह है कि मुझे बिना पलकों को झपकाए और बिना सोचे ही यहाँ रहना है। मेरी बात तुम्हारी समझ में आ रही है, कि मैं अब दोबारा कभी नहीं सो पाऊँगा ! और तब मैं खुद के साथ कैसे रह पाऊँगा ! तुम मुझे समझने की कोशिश करो कि किसी को सताना मेरी आदत में शुमार है। दरअसल यह मेरे व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष है, और शायद यही कारण है कि मैं अपने को सताने से भी बाज़ नहीं आता और यदि तुम चाहो कि मैं तुम्हें नहीं, अपने को ही लगातार सताता रहूँ; तो यह सम्भव नहीं। मैं बिना रुके ऐसा नहीं कर पाऊँगा, और अपने को नहीं, तो दूसरों को सताऊँगा,…वहाँ मेरी रातें ज़मीन पर होती थीं और मैं चैन की नींद सो जाता था। मेरी रातें पुरसुकून हुआ करती थीं जो थकान के बाद इनाम के रूप में, मीठे-मीठे सपने दिया करती थीं-हरी-भरी घासों से भरा मैदान और उस मैदान में लगभग तैरते-से मेरे पाँव…आह ! लगता है बीच में ही सपना टूट गया और सवेरा हो गया, हमेशा-हमेशा के लिए।
– इसी पुस्तक से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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