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॥ श्री गणेशाय नमः ॥
स्कंद महापुराणान्तर्गत
श्री नर्मदा पुराण
नर्मदा पूजिता तन भगवाश्व महेश्वरः।
वाचके पूजिते तद्वद् देवाश्व ऋषयोऽचिताः॥
नर्मदा का स्वरुप वर्णन
प्रथम अध्याय प्रारम्भ
श्री कार्तिक जी ने स्कन्द जी से कहा कि हे मार्कन्ड, अब हम नर्मदा का जल जिसमें माँ साक्षात बिराजी हैं उन माँ का चरित्र संक्षेप में वर्णन कर रहे हैं। जो इस धरा पर देव, दानव, मानव को दुर्लभ थी। जो माँ का सम्वाद है वही इस भू-भार के मानव को सुलभ होगी। आज के प्रसंग में मार्कन्ड जी ने कहा कि नर्मदा का प्रादुर्भाव इस वसुन्धरा पर हर जीव के उद्धार हेतु हुआ। जो जिस कामना को लेकर आता हैं वही उन्हें मिल जाता है व रूप को धर अचर जीवों के उद्धार हेतु वरदानी बनी। अब माँ के स्नान करते हुये गजों के गण्डस्थल से गिरे हुए मद में जो मदिरा के समान गंध से उत्तम स्नान क्रीड़ा द्वारा देवाङ्गनाओं के स्नान देह से गंध केसर की सुंगध युक्त प्रातः सायं मुनि गणों द्वारा सुमनों वा दीप से समर्पित बिटप वृन्द की गजसूंड जैसी नूतन तरंगों की लहर नर्मदा के जल से सबकी रक्षा करो।
मार्कण्डेयजी बोले कि सिद्ध गंधर्वों से सेवित यक्ष व विद्याधरों से व्याप्त अनेक प्रकार के देवगणों से युक्त रमणीक हिमालय के शिखर में ब्रह्मा, विष्णु एवं सभी देवताओं सहित स्वामी कार्तिक, नन्दी, गणेश व नौ ग्रहों सहित चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र, ध्रुव मंडल के सभी देवता नर्मदा को नमस्कार कर प्रार्थना कर रहे हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
Jayraj –
Good