Tota Maina Ki Kahani

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Tota Maina Ki Kahani

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600.00 450.00

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600.00 450.00

Author: Madhuresh

Availability: 4 in stock

Pages: 248

Year: 2024

Binding: Hardbound

ISBN: 9789362877888

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

तोता मैना की कहानी

कथा-समीक्षा में मधुरेश जी का जो योगदान है, वह उनके जीवन भर की सारस्वत-साधना का प्रतिफल है। मधुरेश जी यद्यपि आलोचना की किसी ख्यात प्रवृत्ति से जुड़े समीक्षक के रूप में चर्चित नहीं हैं, परन्तु बुनियादी तौर पर वे प्रगतिशील दृष्टि के आलोचक हैं। स्वस्थ सामाजिक दृष्टि और स्वस्थ सामाजिक जीवन-मूल्यों से जुड़ी उनकी समीक्षा मूल्य-परक समीक्षा है। मधुरेश का आलोचना-कर्म साक्ष्य है कि हमारे समय की आलोचना और आलोचकों में उनकी जो हैसियत है, वह उनकी अपनी अर्जित की हुई है।

– शिवकुमार मिश्र

★★★

मधुरेश जी पिछले कई वर्षों से हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में जो काम किया है उससे हिन्दी की कथा आलोचना विकसित हुई है। उनके आलोचनात्मक लेखन का मुख्य क्षेत्र हिन्दी का कथा साहित्य है। उन्होंने हिन्दी उपन्यास की आलोचना लिखी है और हिन्दी कहानी की भी। उनका अधिकांश आलोचनात्मक लेखन पुस्तक-समीक्षा के रूप में पाठकों के सामने आया है। मेरा अनुमान है कि मधुरेश जी ने जितनी पुस्तक समीक्षाएँ लिखी हैं उतनी शायद ही किसी अन्य आलोचक ने लिखी हैं। अब तक आलोचना की उनकी 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

– मैनेजर पाण्डेय

★★★

हिन्दी कहानी की ये ख़ुशक़िस्मती है कि मधुरेश के रूप में उसे एक ऐसा एकनिष्ठ साधक मिला है जिसने पिछले पचास सालों से साहित्य की इस विधा के लिए अपने शोध अध्ययन, और लेखन को पूरी तरह समर्पित किया है। मधुरेश का समीक्षा के क्षेत्र में पूरी तन्मयता और समर्पण के साथ किया गया काम आज इसीलिए भी ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यथार्थवादी आलोचना का मैदान ख़ाली दिखाई देता है।

– नमिता सिंह

★★★

एक आलोचक के रूप में मधुरेश कहानी-आलोचना को एक स्थायित्व और एक दिशा देने में सक्षम होते हैं। कहानी-आलोचना के लिए वे आलोचना के नये सीमान्तों की भी खोज करते हैं। हिन्दी-आलोचना की यह एक सीमा रही है कि उसने अधिकतर कविता-आलोचना के औज़ारों से कथा-साहित्य का भी मूल्यांकन किया अथवा पश्चिम के आलोचना शास्त्र से हिन्दी की रचनाशीलता को परखने का उपक्रम किया। अतः कहानी-आलोचना का कोई शास्त्र विकसित नहीं हो सका। मधुरेश की कहानी – आलोचना का एक महत्त्व यह भी है कि वह कहानी – आलोचना के लिए कविता के शास्त्र के पास नहीं जाती है।

– वीरेन्द्र मोहन

★★★

मधुरेश हिन्दी के उन गिने-चुने आलोचकों में हैं, जो बिना किसी शोर और परिदृश्य-प्रपंच के चुपचाप काम करने में यक़ीन रखते हैं। उन्होंने अपनी लम्बी सृजनात्मक अवधि में जिस एकनिष्ठता और निरन्तरता का परिचय दिया, वैसे उदाहरण आज ज़्यादा नहीं हैं। शायद यह भी एक कारण हो कि उनके आलोचनात्मक लेखन का भूगोल विस्तृत और वैविध्यपूर्ण है। लेखन में वे हमेशा विषय के मूल से विस्तार की ओर जाते हैं और ऐसा करते हुए वे कोई पूर्वाग्रह नहीं पालते। उनकी सहज और स्पष्ट भाषा में एक ऐसा झिलमिल आलोचनात्मक विवेक है- जिसमें परम्परा, प्रगतिशीलता अथवा आधुनिकता में किसी एक की प्रतिबद्धता या प्रतिकार ज़रूरी नहीं। यही कारण है कि उनके आलोचनात्मक आकलन में न तो सामाजिक दायित्वों का निषेध है और न ही साहित्य के मूलभूत प्रतिमानों का। समाज और साहित्य के स्वाभाविक रिश्तों से ही वे उस नैतिक बोध को विकसित करते हैं-जो उनकी आलोचनात्मक दृष्टि में शामिल है।

– कर्मेन्दु शिशिर

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Authors

Binding

Hardbound

Language

Hindi

ISBN

Pages

Publishing Year

2024

Pulisher

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