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Description
विमर्श और व्यक्तित्व
वीरेन्द्र यादव हमारे समय के हिन्दी के प्रख्यात समालोचक हैं, खासकर कथा आलोचना में वह बराबर सक्रिय रहे हैं। साथ ही वे जुझारू, निर्भीक बौद्धिक हैं, जो अपनी बात बेहद साफगोई से रखते हैं। उनके ये दोनों गुण इस पुस्तक में एकसाथ हैं। इसलिए उनकी यह पुस्तक आलोचना तक सीमित नहीं है। इसमें जहाँ मूल्यांकनपरक लेख और व्याख्यान शामिल हैं, वहीं कुछ समकालीनों तथा अग्रज पीढ़ी के लेखकों के संस्मरण भी हैं। जैसा कि किताब के नाम से भी जाहिर है, इसमें हमः विमर्श से भी रूबरू होते हैं और व्यक्तित्वों से भी। विमर्श का दायरा विस्तृत है। इसमें प्रेमचन्द, गुण्टर ग्रास, नीरद चौधरी, पूरन चन्द जोशी, कृष्णा सोबती, राजेन्द्र यादव, डॉ धर्मवीर और अरुन्धति राय के चिन्तन की पड़ताल है तो गीतांजलि श्री के कथा सरोकार की भी। कहना न होगा कि पुस्तक में शामिल निबन्ध, साक्षात्कार आदि सन्दर्भित विषय के बारे में पाठक को पर्याप्त सूचनाएँ भी देते हैं और अधिक गहराई से सोचने-समझने में मदद भी करते हैं। अनेक व्यक्तित्वों के बारे में वीरेन्द्र यादव ने अपनी यादें यहाँ साझा की हैं। स्वाभाविक ही इन्हें पढ़ते हुए अधिकतर लखनऊ और कहीं-कहीं इलाहाबाद के उन दिनों के साहित्यिक परिवेश की झाँकी भी मिलती चलती है। लेकिन अनेक संस्मरण ऐसे भी हैं जो सम्बन्धित रचनाकार के विशिष्ट योगदान को भी रेखांकित करते चलते हैं। जहाँ भी जरूरी लगा, लेखक ने अपनी असहमतियाँ भी दो टूक दर्ज की हैं। इसमें दो राय नहीं कि लेखों, व्याख्यानों, संस्मरणों तथा भेंटवार्ताओं से बनी यह किताब बेहद पठनीय है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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