Hindi Sahityashastra

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Hindi Sahityashastra

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400.00 300.00

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Author: Nandkishore Naval

Availability: 5 in stock

Pages: 280

Year: 2013

Binding: Hardbound

ISBN: 9788181430964

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

हिन्दी साहित्यशास्त्र

क्या हिन्दी का कोई अपना साहित्यशास्त्र भी है? प्रश्न जितना ही दिलचस्प है, उतना ही गहन भी। इस प्रश्न का उत्तर ‘हिन्दी साहित्यशास्त्र’ नामक यह पुस्तक बहुत ही विदग्धता से देती है। साहित्यशास्त्र का यह मतलब कतई नहीं है कि वह कुछ शास्त्रकारों या सिद्धान्तकारों द्वारा तैयार की गयी एक निर्देशिका हो, जिसे साहित्य-विशेष पर आरोपित कर दिया जाए। हिन्दी का साहित्य अपने आरम्भ-काल से ही जितना गतिशील और वैविध्यपूर्ण रहा है, उसकी कोई शास्त्रीय निर्देशिका तैयार भी नहीं की जा सकती। लेकिन सर्वथा स्वाभाविक रूप से वह साहित्य साहित्य के शास्त्रीय वा सौन्दर्यात्मक प्रतिमानों की भी रचना करता रहा है अपने सृजन के द्वारा भी और चिन्तन के द्वारा भी। निश्चय ही यह रचना दूसरे आगे-पीछे के साहित्यों से अलग रहकर और सिर्फ़ अपने तक सीमित रहकर नहीं की गयी, लेकिन वह हमेशा अपनी भूमि पर की गयी है, यह तय है।

सर्वप्रथम हमें तुलसीदास में ही एक मुक़म्मल नये काव्यशास्त्र की रचना के संकेत मिलते हैं, फिर आधुनिक काल में जब गद्य-माध्यम की सुविधा प्राप्त हुई और गद्य की अनेक विधाओं में भी साहित्य-सृजन किया जाने लगा, तो उसमें स्वाभाविक रूप से साहित्य के अपने प्रतिमान निर्मित और विकसित होने लगे। कहने की आवश्यकता नहीं कि उसमें एक तरफ भातेन्दु, प्रेमचन्द, प्रसाद, निराला, जैनेन्द्र, अज्ञेय और मुक्तिबोध-जैसे रचनाकारों का योगदान है, तो दूसरी तरफ़ रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा और नामवर सिंह जैसे आलोचकों का। इनके सृजन और चिन्तन से हिन्दी का जो साहित्यशास्त्र विकसित हुआ है, वह उसके साहित्य की तरफ ही बहुवर्णी और बहुआयामी है। इस कारण उसका अध्ययन तो किया जा सकता है, हिन्दी साहित्य और उसके चिन्तन को समझने के लिए और उससे नवोन्मेष प्राप्त करने के लिए, पर किसी रूढ़ और जड़ शास्त्र की तरह उसका उपयोग नहीं किया जा सकता, जो साहित्य का नवीन मार्ग खोलने की जगह उसके पैरों में साँकल बन जाये।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2013

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